Book Title: Shabdaratnamahodadhi Part 3
Author(s): Muktivijay, Ambalal P Shah
Publisher: Vijaynitisurishwarji Jain Pustakalaya Trust Ahmedabad
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छोउ.
स्पर्श-स्फट] शब्दरत्नमहोदधिः।
२१५९ स्पश् (चु. आ. स. सेट-स्पर्शयते) ४२. योरी | स्पष्टता स्त्री., स्पष्टत्व न. (स्पष्टस्य भावः तल+टाप्
5२वी, मण, भजी ४, मालिंगन ४२. ___ त्व) मुस्ता५५j, 4.524j. स्पर्श पुं. (स्पश्-स्पृश्-वा+अच्+घञ् वा) २५२८ ७२वी, स्पृ (क्रया० पर०-स्पृणाति) छो.. हे, 3gl२ ४२वो,
અડકવું, ત્વચા ઇન્દ્રિયથી ગ્રહણ કરાતો એક ગુણ, | j, २६॥ ४२वी, वित. २३. ASL 5२, रोम, युद्ध, गुप्त५२-मनुष्य, छूपापोलीस, . स्पृक्का स्त्री. (स्पश्+कक् पृषो० शस्य कः) मे. टी वायु. -स्पर्शगुणो वायुः-तर्क० । (स्पृश्यन्ते वायुना जिह्वाग्रादय उच्चारणाय घञ्) 'ई' थी 'भ' सुधीन।
स्पृश् (तुदा० पर०-स्पृशति) 3g- स्पृशन्नपि गजोहन्तिस्पर्श. अक्षरी (स्पृश्+णिच्+अच्) हान, संभोग. ३।१४। -कणे परं स्पृशति हन्ति परं समूलम्(त्रि.) उत्तप्त-संताप पाभेल.
पञ्च० ११३०। स्पर्शतन्मात्र (न.) सांज्यमत प्रसिद्ध वायुनु हान स्पृश् त्रि. (स्पृश्+क्विप्) २५ ४२८२, वाचना२२५., . सूक्ष्म भूत.
मर्मस्पृश् । स्पर्शन न. (स्पृश्-स्पर्श-वा ल्युट) #, स्पश ४२वो,
स्पृष्ट त्रि. (स्पृश्+क्त) २५० १२- अचोऽस्पृष्टा ४५ ४२. (न. स्पृश्+णिच्+ ल्युट्) भेट, हान.
यणस्त्वीषन्नेमस्पृष्टा शल: स्मृताः । शेषाः स्पृष्टा (पुं. स्पृश्+कर्तरि ल्यु) वायु.
हल: प्रोक्ता निबोधानुप्रदानतः- शिक्षा-३०। स्पर्शनक न. (स्पर्शन+कन्) सांध्यशनमा ता.स.
स्पृष्टास्पृष्ट, स्पृष्टास्पृष्टि न., स्पृष्टि श्री. (स्पृष्टेन ત્વચાનો પર્યાયવાચી શબ્દ.
आ सम्यक् स्पृष्टम्/स्यश्-भावे क्त कर्मव्यतिहारे स्पर्शनीय त्रि. (स्पर्श-स्पृश्+कर्मणि अनीयर) २५श
इच्, समा. पूर्वपददीर्घः/स्पृश्+भावे क्तिन्) ५२२५२ કરવા લાયક, અડકવા યોગ્ય.
स्प ७२वो-2133. स्पर्शमणि पुं. (स्पर्शेन लोहादीन् सुवर्णतां नयन्मणिः)
स्पृह (चु. उभ. स. सेट-स्पृहयति-स्पृहयते) uj . ५२समलि. स्पर्शमणिप्रभव न. (स्पर्शमणेः प्रभवति, प्र+भू+अच्)
स्पृहयामि खलु दुर्ललितायास्मै-शाकुं० ७। तृru सोनु.
रामवी, याड, २७g. स्पर्शलज्जा स्री. (स्पर्शमात्रेण लज्जते सङ्कोचात्,
स्पृहणीय त्रि. (स्पृह+कर्मणि अनियर) व दाय:
अहो ! बतासि स्पृहणीयवीर्यः-कुमा० ३।२०। तृष्॥ लज्ज्+अच्+ टाप्) रिसामान वा-4%8%ardl. स्पर्शशुद्ध त्रि. (स्पर्शण शुद्धः) स्पर्श 43 शुद्ध
રાખવા યોગ્ય, ચાહવા લાયક, ઈચ્છવા યોગ્ય, स्पर्शशुद्धा स्त्री. (स्पर्श शुद्धा) शतमूडी वनस्पति...
વખાણવા લાયક. स्पर्शा स्त्री. (पश्-ग्रहणे+घ्ञ+टाप्) दुखा. स्त्री,
| स्पृहयालु त्रि. (स्पृह्+णिच+ आलुच्) ६२७८ ४२८२, વ્યભિચારિણી સ્ત્રી.
उत्सु. -भोगेभ्यः स्पृहयालवो न हि वयम्स्पर्शाज्ञता स्त्री., स्पर्शाज्ञत्व न. (स्पृशाज्ञ+तल्+टाप्
भर्तृ० ३।६४। -तपोवनेषु स्पृहयालुरेव-रघु० १४।४५। त्व) थी यामी परी थाय छे ते में स्पृहा स्त्री. (स्पृह + अङ्+टाप्) ६२७।, याना, तृष्. વાતજન્ય રોગ.
स्पृहित त्रि. (स्पृह+कर्मणि क्त) यायेस, छे, स्पष्टुं त्रि. (स्पृश्+तृच्) संताप ४२॥बनार, तपाबनार, ___णेस, तृष्य राजेस. (पु.) रोग
स्पृह्य पुं. (स्पृह+कर्मणि यत्) पी.शर्नु उ. (त्रि.) स्पश् (भ्वा. उभ. स. सेट-स्पशति-ते) 4234j, ॐवा दाय, तृष्णा योग्य, यडावा लाय माघ ४२वी, रो, गूंथ.
ઇચ્છવા યોગ્ય, વખાણવા લાયક. स्पश पुं. (स्पश्+क्त) दूत, 1.सू.स., छूषो मातमी२, | स्पृ (क्रया० पर० स्पृणाति) माघात. ४२वी, मा. ना. यूपी पोलीस, युद्ध
स्प्रष्ट पुं. मी स्पष्ट -रोग, शरीरमा वि२, मनोव्यथा. स्पष्ट स्त्री. (स्पष्टस्य भावः तल+टाप्-त्व) मुद्यु, स्फट (भ्वा. पर. अ. सेट-स्फटति) वी५२६४, __432- स्पष्टे जाते प्रत्यूष-का० ।
थ६ ४.
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