Book Title: Shabdaratnamahodadhi Part 3
Author(s): Muktivijay, Ambalal P Shah
Publisher: Vijaynitisurishwarji Jain Pustakalaya Trust Ahmedabad

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Page 533
________________ २१६८ शब्दरत्नमहोदधिः। [स्वरूपसंबन्ध-स्वर्णफला स्वरूपसंबन्ध पुं. (स्वरूपस्य संबन्धः) न्यायशास्त्रमा | स्वर्णकण पुं. (स्वरर्णस्य कणः) सोनानी. ४९-२१, કહેલ એક સંબંધ. अंश थो. भा. (न. स्वर्णवत् पीतः कणो यस्य) स्वरेणु (सी.) सूर्यनी पत्नी. એક જાતનો ગુગળ. स्वरोदय पुं. (स्वरस्य उदय:) शुभ-अशुभ५५॥ ननु स्वर्णकदली (स्री.) में तनी 3-सोने ३५. - સાધન એક તંત્રશાસ્ત્ર. स्वर्णकाय, स्वर्णपक्ष पुं. (स्वर्ण इव पीत: कायो स्वर्ग . (स्वरति गीयते, गै+क) स्व० हेवन २३४८४ यस्य/स्वर्णमिव पक्षो यस्य) २७ (त्रि.) सोनाना ___ अहो ! स्वर्गादधिकतरं निर्वृतिस्थानम्-शाकुं० ७। शरी२वाणु.. स्वर्गगत त्रि. (स्वर्गे, स्वर्गलोके गतः) स्वभi गयेस. स्वर्णकार, स्वर्णकृत् पुं. (स्वर्णं स्वर्णमयमलंकारादि स्वर्गगति स्त्री., स्वर्गगमन न. (स्वर्ग गतिः/स्वर्गे करोति, कृ+अण्/स्वर्ण सुवर्णालङ्कारं करोतीति, गमनम्) स्व[Hi - स्वर्गद्वारकपाटपाटनपटुर्धर्मोऽपि __कृ+क्विप् तुक् च) सोनी. नोपार्जितः-भर्तृ० ३।१०। स्वर्णकेतकी स्त्री. (स्वर्णमिव केतकी) पाय 34.4k 3. स्वर्गगामिन् त्रि. (स्वर्ग गच्छति गम्+णिनि) २०[Hi स्वर्णक्षीरी स्त्री. (स्वर्णमिव क्षीरं निर्यासो यस्याः) मे. नार. જાતની વનસ્પતિ. स्वर्गगिरि, स्वर्गाचल, स्वर्गिगिरि, स्वगिरि, स्वर्णगिरि स्वर्णगैरिक न. (स्वरणमिव पीतं गौरिकम्) सोनागर. पुं. (स्वर्गस्य गिरिः/स्वर्गलोकस्थोऽचल:/स्वर्गिणां स्वर्णग्रीवा स्त्री. (स्वर्णवर्णा ग्रीवा यस्याः) ते. नामे मे. गिरिः/स्वर्गलोकस्थो गिरिः/स्वर्णस्य गिरिः) मे२ ५वत. नही.. स्वर्गनाथ, स्वर्गपति, स्वर्गभर्तृ, स्वर्गस्वामिन् पुं. स्वर्णचूड पुं. (स्वर्णमिव चूडा यस्य) यास. ५क्ष.. स्वर्णचूडी स्त्री. (स्वर्णचूड+स्त्रियां जाति. ङीष्) यास.(स्वर्गस्य नाथः/स्वर्गस्य पतिः/स्वर्गस्य भर्ता/स्वर्गस्य पक्ष. स्वामी) 5न्द्र. स्वर्णज न. (स्वर्णाज्जायते, जन्+ड) Bus (त्रि.) स्वर्गवधू स्री. (स्वर्गस्य वधूः) सप्स, हेवांगना સોનાથી ઉત્પન્ન થનાર. स्वर्गस्त्रीणां (वधूनां) परिष्वङ्गः कथं मान लभ्यते । स्वर्णजीवन्ती स्री. (स्वर्णवर्णा जीवन्ति) में तनु स्वर्गसद्, स्वर्गिन्, स्वर्गाकस् पुं. (स्वर्गे सदति, सद्+क्विप्/स्वर्गोऽस्तस्य भोग्यत्वेन इनि/स्वगं ओको स्वर्णदी स्त्री. (स्वर्णं द्यति, अपसारयति तुल्यवर्णत्त्वात्, यस्य) हेव, स्व.वासी- “अनध्यमध्येण तमद्रिनाशः | दो+क+ङीप्) वृश्चिासु, वनस्पति. स्वर्गीकसामच्चितमर्चयित्वा'-कुमारे. । स्वर्णदीधिति . (स्वर्णमिव दीधितिरस्य) भनि, यित्रानु स्वर्गिन् त्रि. (स्वर्ग+अस्त्यर्थे इनि) देवसोमi ४-४२, काउ. 24iPA. ४२॥२- त्वमपि विततयज्ञः स्वर्गिणः स्वर्णदु पुं. (स्वर्णमिव पोतो द्रुः) १२माणानु ॐ3. प्रोणयालयम्-शाकुं० ७॥३४। स्वर्णपाटक पुं. (स्वर्ण पाटयति, पट+णिच्+ण्वुल्) स्वर्ण्य त्रि. (स्वर्गस्य निमित्तं संयोग उत्पातो वा, स्वर्ग+ टणार. ___ यत्) स्वप्न साधन, स्व० संधी., स्व.[k. स्वर्णपुष्प पुं. (स्वर्णवणं पुष्पमस्य) यंपार्नु, जाउ, - स्वर्जिक पुं. (सु+अर्ज+घञ् ततः अस्त्यर्थे ठन्) "एकेन स्वर्णपुष्पेण दत्वा भवति तत्फलम् ।" सापार. ગરમાળાનું ઝાડ. स्वर्जिका स्त्री., स्वर्जिकाक्षार पुं. (स्वर्जिकायाः क्षारः) स्वर्णपुष्पा स्त्री. (स्वर्णवत् पुष्पमस्याः राज. नि. टाप्) ४वणार. સાતલા વૃક્ષ, કલિકારી વનસ્પતિ. स्वर्जिन पुं. (स्व+अस्त्यर्थे इनि) सामा२. स्वर्णपुष्पी स्त्री. (स्वर्णवत् पुष्पमस्याः डीप्) २माणानु स्वर्ण न. (सुष्ठु अर्णो वर्णो यस्य) सोनु, धतूरी, 3, पीप, 343ानु, उ. नास२, मे. सतर्नु us. स्वर्णफला स्त्री. (स्वर्णवत् फलं यस्याः) मे तनी स्वर्णक त्रि. (स्वर्ण+संज्ञा० कन्) सोनाd, सोन संoil. -साने.२. ३०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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