Book Title: Shabdaratnamahodadhi Part 3
Author(s): Muktivijay, Ambalal P Shah
Publisher: Vijaynitisurishwarji Jain Pustakalaya Trust Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 462
________________ सामर्थ्य-सामुद्रक शब्दरत्तमहोदधिः। २०९७ सामर्थ्य न. (समर्थस्य भावः ष्यञ्) समर्थ५gi, d| सामान्यलक्षणा स्त्री. (सामान्यं साधारणधर्मः लक्षणं हेर्नु मण- निन्दतस्तव सामर्थ्य ततो दुःखतरं नु यस्याः) न्यायम डेस. भदौडि प्रत्यक्ष साधन किम् -भग० २०३६। योग्यता, संगत- सतत 3 64ाय. અર્થપણું, આકાંક્ષા યોગ્યતા વગેરેવાળું. सामान्या स्त्री. (समानैव स्वार्थे ष्यञ्+टाप्) साधा२४ सामर्ष त्रि., सामर्षम् अव्य. (अमर्षेण सहितः, सहस्य स्त्री-वेश्या. सः/अमर्षेण सहितं यथा तथा) धाj, Bel, सामि अव्य. (साम+इञ्) मधु. -अभिवीक्ष्य सडनशील, अधथी. सामिकृतमण्डनं यतीः कररुद्धनीविगलदंशुकाः स्त्रियःसामवायिक पुं. (समवाये प्रसृतः ठञ्) मंत्री, साडt२, शिशु० १३।३१। निन्हाम ५२रातो अव्यय, प्रधान, सीवान. (त्रि. समवायस्येदं, ठञ्) समवाय. | सामिकरण न. (सामि+कृ+ल्युट) मधु ४२, लिन्हा સંબંધવાળું. २वी.. सामविद् त्रि. (सामं वेत्ति, विद्+क्विप्) शान्त पाउवाद् । सामिकृत त्रि. (सामि+कृ+क्त) उधु ४३८, निहा ७२. 1910२, साम, 6404. 30.09२. (पुं.) ३१. સામવેદ જાણનાર બ્રાહ્મણ. सामिधेनी स्त्री. (सम्+इन्ध्+करणे ल्युट नि. यद्वा सामवेद पुं. (सामश्चासौ वेदश्च) ते नामे मे वह. समिधां आधानी निपा.) यशन अनिमi. cussi सामवेदज्ञ, सामवेदविद्, सामवेदिन् पुं. (सामवेदं નાંખતી વખતે બોલાતો મન્ન, યજ્ઞમાં હોમવાનાં લાકડાં जानाति, ज्ञा+क/सामवेद वेत्ति विद्+ क्विप्/साम -समिद्धे सामिधेनीभिर्होता तस्मात् सामिधेन्यो नाम' वेत्ति, विद्+णिनि) सामवेद नार. -श्रुत्याम् । सामसंगायक पुं. (सामन्, सम्+गै+ण्वुल्) सामवेर्नु | सामिधेन्य (पुं.) यम भनिने प्रचलित. २ती du ગાન કરનાર બ્રાહ્મણ. બોલાતો એક મંત્ર. सामाजिक पुं. (समाज: सभावेशनं प्रयोजनमस्य ठक्) सामिभवन न. (सामि+भू+ल्युट) मधु थ, निहा समास.६, सभ्य, सभामा असनार (त्रि. समाजस्येदं, थवी. समाज+ठञ्) समानु, समा४ संबंधा. सामिभूत त्रि. (सामि+भू+कर्मणि क्त) मउधुं यथेस, सामानाधिकरण्य न. (समानाधिकरणस्य भावः ष्यञ्) निहा थये.. સમાનાધિકરણપણું, સમાન વિભક્તિ-લિંગ-વચનપણું, | सामिभुक्त त्रि. (सामि+भुज्+क्त) अधुं भोगवस, અભેદાન્વયબોધકતા. અડધું ખાધેલ. सामान्य न. (समान एव स्वार्थे ष्यञ्) समान५... - सामिपीत त्रि. (सामि+पा+क्त) उधु पास.. आहारनिद्राभयमैथुनं च सामान्यमेतत् पशुभिः नराणाम् सामीची (स्त्री.) स्तुति, प्रशंसा. -हितो० । तुस्य५j. -जातिर्जात च सामान्य व्यक्तिस्तु सामीप्य न. (समीपस्य भावः, ध्यञ्) सेप, पृथगात्मिका-अमरः । -एकैव मूर्तिविभेदे त्रिधा सा नहीपशु, ५७, पोशा- 'सामीप्याश्लेष सामान्यमेषां प्रथमावरत्वम्-कुमा० ७।४४। विषयैर्व्याप्त्याधारश्चतुर्विधः' - मुग्धबोधव्याकरणे । सामान्यछल न. (सामान्यनिमित्तं छलम्) गौतमसूत्रम | सामुद्र न. (समुद्रस्येदं अण्) समुद्रनु भाई. -सामुद्रं उस में तना छ. - सम्भवतोऽर्थस्यातिसामान्य- लवणम् । (त्रि. समुद्रे भवः, अण) समुद्रमi &२योगादसम्भूतार्थ कल्पना-गौ० सू० । थना२. सामान्यतोद्दष्ट न. (सामान्यत सामान्यस्य वा द्दष्टम्) सामुद्रक न., सामुद्रिक त्रि. (समुद्रेणर्षिणा प्रोक्तम् એક જાતનું અનુમાન. वुण् यद्वा समुद्रमेव, स्वार्थे क ठञ्/त्रि. समुद्रण सामान्यप्रत्यासत्ति स्त्री. (सामान्यं तद्ज्ञानं वा प्रत्यासत्तिः) ऋषिणा प्रोक्तं वेत्त्यधीते वा) 2. को३- २५॥ તે નામે એક અલૌકિક પ્રત્યક્ષ, સત્રિક. ઉપરથી સ્ત્રી પુરુષોનાં શુભાશુભ લક્ષણને જણાવનાર सामान्यलक्षण न. (सामान्य लक्षणम) सामान्य क्ष, સમુદ્રઋષિકૃત એક ગ્રન્થ, તેને ભણનાર, જાણનાર, व्या५.परिभाषा -इति द्रव्यसामान्यलक्षणानि-तर्क० ।। हरियाई भाई. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562