Book Title: Shabdaratnamahodadhi Part 3
Author(s): Muktivijay, Ambalal P Shah
Publisher: Vijaynitisurishwarji Jain Pustakalaya Trust Ahmedabad

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Page 477
________________ २११२ शब्दरत्नमहोदधिः। [सुकर्णिका-सुख सुकर्णिका स्त्री. (सुष्ठु कर्णाविव पर्णान्यस्याः टाप् कप् । सुकृत न. (सु+कृ+भावे क्त) पुण्य, धर्म, साम, अत इत्वं) 6४२नी वनस्पति. भंगण, श्रेष्ठ उभ- नादत्ते कस्यचित् पापं न चैवं सुकर्णी स्त्री. (सुष्ठु कर्णाविव पत्राण्यस्याः डोप्) सुकृतं विभुः-भग० ५।१५। (त्रि. सु+कृ +कर्मणि 5-४२५२५८. . क्त) सारी रीते ४२०, साई ४२स, शुभ, भांगलिसुकर्मन् पुं. (सुष्ठु कर्म यस्मात् यद्वा शोभनं कर्म स्वर्गाभिसन्धि सुकृतं वञ्चनामिव मेनिरे-कुमा०६।४७। यस्मिन्) विष्म सत्यावीश योगमांनो मे - तच्चिन्त्यमानं सुकृतं तवेति-रघु० १४।१६। यो, विश्वमा टेव. (त्रि. सुष्ठु कर्म यस्य) सा सुकृति स्त्री. (सु+कृ+भावे क्तिन्) पुष्य, भ, सभा, म. ४२८२, श्रेष्ठ भवाणु, पुण्याजी- प्रसूतिकाले धर्म. यदि चेत् सुकर्मा नरः सुकर्मा भवति प्रसिद्धः- सुकृतिन् त्रि. (सुकृतमनेन इष्टा० इनि) पुयी , क्रोष्ठीप्रदीपः । માંગલિક, સત્કર્મવાળું, સારું કામ કરનાર, ધર્મિષ્ઠ - सुकल पुं. (सुष्टु कल्यते, ख्यायतेऽसौ, सु+कलि+अच) 'जयन्ति ते सुकृतिनो रससिद्धाः कवीश्वराः । नास्ति દાતા તરીકે તથા ભોજન કરાવનાર તરીકે પ્રસિદ્ધ येषां यशःकाये जरामरणजं भयम्' -भर्तृ० । -सन्तः थयेद भएस., सुं४२ भनी २ अस्पष्ट श६. (त्रि. सन्तु निरापदः सुकृतिनां कीर्तिश्चिरं वर्धताम्-हितो० ४ । सु+कल्+अच्) सुं८२- मनोड२ सस्पष्ट श०६ ४२ना२. - चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन ! सुकाण्ड पुं. (सुष्टु काण्डो यस्य) यांनी वेदो, आत्तों जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ ! -गीतायाम् परेसी. ७।१६। सुकाण्डिका, सुकाण्डी स्त्री. (सुन्दरः काण्डो यस्याः सुकेसर पुं. (सुष्ठु केसरो यस्य) जानु उ. कन्+टा अत इत्वम्/सुकाण्ड +स्त्रियां डीप्) सुकोली स्त्री. (सुष्टु कोलो यस्याम्) १0२tोदी काण्डीरलता न. वेस-1३८, रेवानी .. सुकाण्डिन् पुं. (सुकाण्ड+अस्त्यर्थे इनि) भमो. वनस्पति. सुकाम त्रि. (सुष्ठु कामो यस्य) सा२८ मना२यवाणु, सुकोषक पुं. (सुष्ठु कोषोऽस्य कप्) 'कोषाम्र' नामे वृक्ष. શુભ અભિલાષાવાળું. सुकामा स्त्री. (सुष्ठु कामो यस्याः यद्वा सुष्टु काम्यतेऽसौ) सुक्रिय त्रि. (सुष्ठु क्रिया यस्य) सारी यावाणु, ત્રામાણનો વેલો. सवाणु, पुथ्यशाली, धर्मिष्ठ. सुकालुका स्त्री. (सु+कल-उण्+स्वार्थे क+टाप्) डोटनी | सुक्रिया स्री. (सुष्ठु क्रिया) AA BAL, सभा, पुष्य, वेत. धर्म. सुकाष्ठ न. (सुष्टु काष्ठं यस्य प्रा. ब. यद्वा सुष्ठु सुख (चु. उभ. स. सेट-सुखयति-ते) सुमसं.५ाहन काष्टम्) विहानु, वाई, साई. २, सुम भणव, सुजी य. सुकाष्ठा स्त्री. (सुष्ठ काष्ठं यस्याः) तनी , सुख न. (सुखयति, सुख्+अच्) पुण्यन्य मानंह, वनस्पति. એક ગુણ જેના અનુભવ માટે ચિત્ત અનુકૂળ થાય. सुकुन्दक पुं. (सु+कुन्दि-ण्वुल्) कुंजी. छेते. पाथ, स्व०, ऋद्धि नामे औषधि. (त्रि. सुखसुकुमार त्रि. (सुष्ठु कुमारयत्यनेन, सु+कुमार+घञ्) | मस्त्यस्य सुख+ अच्) सुजी, सुप२४- यडेवोपनतं અત્યન્ત કોમળ, સુંદર કુમારાવસ્થાવાળું. दुःखात् सुखं तद्रसवत्ताम्-विक्रम० ३।२१। समृद्धिसुकुमारक न. (सुकुमार+संज्ञायां कन्) तमालपत्र, अद्वैतं सुखदुःखयोरनुगुणं सर्वास्ववस्थासु यत्(पुं.) उiग२, ५. उत्तर० ११३९। -दिशः प्रसेदुर्मरुतो ववुः सुखाःसुकुमारा स्त्री. (सुकुमार+स्त्रियां टाप्) 3, रघु० ३।१४। -सुखश्रवा निस्वनाः- रघु० ३।१९। - બટમોગરો, કેળ, પૂક્કા વનસ્પતિ, માલતીની વેલ. सुखं हि दुःखान्यनुभूय शोभते घनान्धकारेष्विव सुकृत् त्रि. (सु+कृ+क्विप् तुक् च) पुश्य 51२७, पुण्य दीपदर्शनम् । सुखात् तु यो याति दरिद्रतां धृतः ७२८२. पुण्याजी, धार्मि: मनुष्य. शरीरेण मृतः स जीवति-मृच्छक० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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