Book Title: Shabdaratnamahodadhi Part 3
Author(s): Muktivijay, Ambalal P Shah
Publisher: Vijaynitisurishwarji Jain Pustakalaya Trust Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 463
________________ २०९८ साम्परायिक त्रि. ( सम्परायाय आपदे परलोकाय वा हितं ठक्) परलोऽनुं साधन, परसोड प्राप्तिनो उपाय. (त्रि सम्पराय + ठक् ) युद्ध, सडा. साम्प्रतम् अव्य. (सम्+ प्र+तन् +डमु) उभशां, हाल - हन्त ! स्थान क्रोधस्य सांप्रतं देव्याः- वेणी० १ । वाजी, योग्य. साम्बू (चुरा. उभ. स. सेट् साम्बयति - ते) संजन्ध वो, भेडावु. साम्ब त्रि. ( अम्बया सह वर्तमानः, सहस्य सः) सम्मा सहित, भाता साथे (पुं. अम्बया पार्वत्या सहितः, सहस्य सः) पार्वती साथै शंड२. साम्बर न. (संबरदेशे भवं, संबर + अण्) अंजर हेशनुं शब्दरत्नमहोदधिः। प्रयता प्रातरन्वेतु सायं प्रत्युद्व्रजेदपि - रघु० १।९० 1 सायिका स्त्री. ( सो + ण्वुल्+टाप्) भस्थिति, अनुभ सायाह्न पुं. (सायोऽह्नः एकत. टच् समा० अह्नादेशः ) સાયંકાળ, સાંજ. પાંચ પ્રકારમાં વિભાગ પામેલા દિવસનો ત્રણ મુહૂર્તરૂપ પાંચમો છેલ્લો ભાગ. भीहु. साम्भवी स्त्री. (सम्भवोऽस्त्यस्य प्रज्ञाद्यण् गौरा० ङीष् ) सायिन् पुं. ( सायति नाशयति गतिक्लेशं सै क्षये + णिनि) લાલ લોધરનું ઝાડ, घोडेस्वार. साम्भस् त्रि. (सह अम्भसा, सहस्य सः) पासी सहित - ४ सहित, पाशी साथे. साम्मातुर पुं. ( सम्मातुरपत्यं पुमान्, सम्मातृ + अण् + उकारश्च) सती स्त्रीनो पुत्र, उट्यासी स्त्रीनी पुत्र. साम्य न. ( समस्य भावः ष्यञ्) समानपशु, तुल्यता. स्पष्टं प्रापत् साम्यमुर्वीधरस्य- शिशु० १८ । ३८ | તુલ્યત્વપ્રયોજક સાધારણ ધર્મ. साम्राज्य न. ( सम्राजो भावः ष्यञ् ) यहवर्तीपशु. साम्राज्यशंसिनो भावा: कुशस्य च लवस्य च उत्तर० ६।२३। आषा भगतना रामपशुं नाहशाही, શહેનશાહત, દશ લાખ ગામોનું સ્વામિત્વ. 'लक्षाधिपत्यं राज्यं स्यात् साम्राज्यं दशलक्षके ।' साय पुं. (सो+घञ्) सां४, जा, सायंडा.. सायंसन्ध्या स्त्री. (साय दिनान्ते सन्ध्या, तत्र सन्ध्यायते - ध्ये घञर्थे क वा) सांभनी वजते थती સન્ધ્યોપાસના, સાયંકાળે દેવની ઉપાસના, સાયંકાળનો विधि सम् + [ साम्परायिक - सारघ सायंतन त्रि. ( सायं भवः, सायम् ट्युल्+तुट् च) सायंडाणे होनार-थनार, सां४नुं, सां४ संबन्धी. सायंतने सवनकर्मणि संप्रवृत्ते - शकुं० ३।२७। सायंतनी स्त्री. ( सायन्तन + स्त्रियां ङीप् ) सायंडाजनी सन्ध्या वगेरे. -'सन्ध्यां सायंतनीं कुर्यात् द्वादश्यादिष्वपि प्रिये ! अकुर्वन्निरयं याति यतो नित्यागमः क्रिया' बृहन्नालतन्त्रे । सायम् अव्य. (सो+त्रमु) सायंडाण, सां४नो समय. - सायक पुं. ( सो + ण्वुल्) जाए, जड्ग, तलवार. सायकपुङ्ख पुं. (सायकस्य पुङ्खः ) जाएानो अग्रभाग. सायकपुङ्खा स्त्री. (सायकस्य पुङ्खो यस्याः) शरपुंज वृक्ष-नामे आउ. सायन न. ( सो + ल्युट् ) विषुववृत्तथी भारंली ग्रह સુધીની લંબાઈ. Jain Education International सायुज्य न. ( सह युनक्ति, युज् + क्विप् सादेशः सयुङ्गसयुजोभावः ष्यञ् ) सहयोग, साथै संबन्ध, साथै હોવાપણું, પાંચ પ્રકારની મુક્તિ પૈકી એક મુક્તિ, सैम्य, खेडता, अलेह. सार् (चु. उभ. स. सेट् - सारयति - ते) हुज वु, सारखं. सार न. ( सृ+घञ्, सार् + अच् वा पाएगी, धन, माजरा, सोढुं, वन, जंगल, योग्यय, योग्यता, सायद्वात. (पुं. सृ+घञ्, सार्+अच् वा) २२. स्नेहस्य तत्फलमसौ प्रणयस्य सारः - मा० १1९ । जण, वीर्य. - सारं धरित्रीधरणक्षमं च कुमा० १।१७ । स्थिरांश भभ्भ-यरजी, सालणार, वायु, रोग, पासो, छडींनी तर-भलाई, परमेश्वर. (त्रि. सृ+घञ) श्रेष्ठ, उत्तम. 'दृष्टिस्तृणीकृतजगत्त्रयसत्त्वसारा । धीरोद्धता नमयतीव गतिर्धरित्रीम् ' -उत्तर० ।। सारं अत्यन्त ६७, घ ४ मजूत, न्याय भरेसुं, योग्य. सारक पुं. ( सारयति, सृ+ णिच् + ण्वुल्) नेपाणी. (त्रि.) सारनार, रेय सावनार. सारखदिर पुं. ( सारश्चासौ खदिरश्च ) भेड भतनी दुर्गन्धी पेर.. सारगन्ध पुं. ( सारः श्रेष्ठो गन्धो यस्य कर्म० वाः) भन्छन्, श्रेष्ठ गन्ध, सुगन्ध सारघ न. ( सघाभिनिर्वृत्तं, अण्) भध. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562