Book Title: Shabdaratnamahodadhi Part 3
Author(s): Muktivijay, Ambalal P Shah
Publisher: Vijaynitisurishwarji Jain Pustakalaya Trust Ahmedabad
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२०६२
समानोदक पुं. ( समानमेकं तर्पणादौ देयमुदकं यस्य) અગિયારથી માંડી ચૌદમી પેઢી સુધીનો સગો. समानोदकभावस्तु निवर्तेताचतुर्दशात्-मनु० ५। ६० । समानोदर्य पुं. (समाने उदरे भवः यत् वा न सादेशः) એક જ માતાપિતાથી ઉત્પન્ન થયેલ સગો ભાઈ. समानोदर्यमस्माकं जटायुं च तथादरात् भट्टिः ७।८६ । समानोदर्या स्त्री. ( समाने उदरे शयितः, यत्+टाप्-पक्षे सादेशो न ) सगी जहेन.
शब्दरत्नमहोदधिः ।
समान्त पुं. ( समस्य अन्तः) वर्षनो छेडी. समाप पुं. ( सम्यक् आपो यत्र अच् समा० नि०) દેવયજનસ્થાન.
समापक त्रि. ( समापयति, सम्+अप्+णक्) समाप्त डरनार, पूर्ण ४२नार, भाप भेजवनार, हार डरनार, મારી નાંખનાર.
समापत्ति स्त्री. ( सम् + आ + पद्+क्तिन्) मजवु, सामे थयुं, अस्मात् प्रसंग, अस्मात् सा थ समापत्ति दृष्टेन केशिना दानवेन विक्रम० १। क्रियासमापत्ति
निवर्ततानि - रघु० ७।२३।
समापन न. ( सम् + आप् + भावे ल्युट् ) समाप्त वु,
पूर्ण ४२, हार भारवु, भारी नांजवु, भापवु, भेजव समापत्र त्रि. ( सम् + आ + पद् + क्त) समाप्त हरेल. प्राप्त रेल, भेजवेस - प्रायः समापनविपत्तिकाले
योऽपि पुंसां मलिना भवन्ति सुभा० । उवेश पाभेल, भारी नांजेस (न. सम् + आ + पद्+भावे क्त) समाप्ति, वध, नाश.
समापित त्रि. ( सम् + आप् + णिच् + क्त) समाप्त रेल, पूए रेल -आरब्धं मलमासात् प्राक् यत् कर्म न समापितम् - मलमासतत्त्वम् ।
समाप्त त्रि. ( सम् + आप् + क्त) समाप्त, संपूर्ण रेल.
-सद्यः प्रबालोद्गमचारुपत्रे नीते समाप्तिं नवचुतबाणेकुमा० ३।२७ | मेजवेस, अंत पाभेल, छेडी पाभेल. समाप्तपुनरात्तता स्त्री. ( समाप्ते वाक्यसमाप्तौ पुनरात्तता)
સાહિત્યપ્રસિદ્ધ કાવ્યનો એક દોષ. समाप्ताल पुं. ( समाप्ताय अलति पर्याप्नोति अल्+अच्)
पति, स्वामी, घटी.
समाप्ति स्त्री. (सम्+आप् + क्तिन्) अवसान, छेडो,
अंत, प्राप्ति, भेजववु, समाधान. समाप्तिक त्रि. ( समाप्ति+कै+क) समाप्त डरनार,
છેડો આણનાર, અંત લાવનાર.
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[समानोदक-स
- समालम्ब
समाप्लुत न. ( सम् + आ + प्लु+क्त) पूरथी व्याप्त, पूरमा डूजी गयेस, लरेलुं.
समाम्नात त्रि. (सम्+आ+म्ना + क्त) गरोस, गशतरी अरेल, इरी रेल, पुनरुक्ति३५ उरेल. समाम्नाय पुं. (सम्+आ+म्ना+घञ्) गएावु, गणतरी अरवी, इरी उहेवु, उहेवु.
समाम्नान न. ( सम् + आ + म्ना + भावे ल्युट् ) गशतरी,
गाना गाते, इरी इरी अहेवु, वारंवार. समाय पुं. (सम्+आ+घञ्) भाव, भाव, समागम. समायात त्रि. (सम्+आ+या+क्त) खावेस, सारी रीते आवेल.
समायोग पुं. ( सम् + आ + युज +घञ्) संयोग-सभवाय वगेरे संबन्ध प्रयोन, अरा.
समारब्ध त्रि. (सम्+आ+रभ् + क्त) खारंभेस, श३ उरेल.
समारम्भ पुं. (सम्+आ+रभि+घञ् नुम्) आरम्भ,
श३आत. - भव्यमुख्या समारम्भा...तस्य गूढं विपेचिरेरघु० १७।५३।
समाराधन न., समाराधना स्त्री. (सम्+आ+राध् भावे ल्युट्/सम्+आ+राध् + ल्युट् + टाप्) आराधना ४२वी, सेवयुं सेवा रवी, संतोष उपभववो, खुशी दु. - नाट्यं भिन्नरुचेर्जनस्य बहुधाऽप्येकं समाराधनम्मालवि० ११४ | समारूढ त्रि. ( सम् + आ + रूह + क्त) जगेल, वधेस, यढेल.
समारोपित न. (सम्+आ+रुह् + णिच् + क्त + पुक्) थडावेसुं सवार थयेल, ताशेसुं भवता चापे समारोपिते काव्य० १० ।
समारोह पुं. (सम्+आ+रुह्+घञ्) अगवु, वधवु, यढते.
समारोहिन् त्रि. (सम्+आ+रुह्+ णिनि) (गनार,
वधनार, यढनार, स्वार.
समालभन न (सम्+आ+लभ् + ल्युट्) प्रेशर वगेरे शरीरे योजवु-योपवु, लेपन 5, यज्ञमां बध रखो, पडवु.
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समालब्ध त्रि. ( सम् + आ + लभ् + क्त) यज्ञमां वध दुरवा
પકડેલ પશુ વગેરે, યજ્ઞમાં વધ કરેલ. समालम्ब पुं., समालम्बन न. (सम्+आ+लबि+घञ्/ सम् + आ + लबि + ल्युट् ) आश्रय, आधार, टेडो, आसंजन, शरण, बडवु, वजगवु.
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