Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
Publisher: Kantilal Manilal Zaveri
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संवेगरंगसाला
॥६८६॥
॥८९३३॥
॥८९३८ ॥
॥८९३९ ।।
सील पुरिससहावो, सीलं चारितपालणं भणियं । आसवदारनिरोहा, अहवा सालं मणसमाही पुरिससहावो य दुहा, पसत्थओ तह य अप्पसत्थो य । रागद्दोसाऽऽईहि, कलुसो जो अप्पसत्थो सो ||८९३४|| होइ पत्थो चित्तस्स, सरलया पयणुरागदोसितं । धम्माऽमिप्पात्तं च, एत्थ पमयं पसत्येणं एयं सुपसत्थसहाब - लकखणं सीलमऽविगलं जस्स । सो मूलगुणाऽऽधारो, धरिही सेसं पि गुणनियरं चय रित्तीकरणाओ, चारितं पुण भवे अणुट्ठाणं । विहिपडिसेहाऽणुगयं, आसवविरईए तं च भवे जम्हा चरिचपालण - लकूखणसीलस्स चैव वुढिकए। आसवनिभणपरं इममुवएसं दिसंति जहा इंदियदमणं काउ, कसायसेनं पि निम्महिय सव्वं । आसवदारनिरोहे, जइज सह निजरापेही इंदियकसायहणणा, हणिय श्चिय आसवा जओ होइ । अहियाऽऽहारे मुके, रोगा इव आउरजणस्स तोचि सव्वे वि, जिएस वट्टंति अप्पर व्व मुणी । न य एत्तो वि उवाओ, अन्नो विजइ सुगइलाभे ॥८९४१ ॥ ता नाणज्झाणेहि, तत्रोत्रलेण य बला निरुभित्ता । सव्वाऽऽसवदाराई, धारेजा अविगलं सीलं तह मणसमाहिलखण - मवि सीलं मोकूखसाहणगुणाणं । जाणाहि मूलकारण-भूयं जम्हा सुए भणियं जस्स धिई तस्स तवो, जस्स तवो तस्स सोग्गइ सुलहा । जे अधिइमंतपुरिसा, तवो वि खलु दुल्लहो तेसि ॥८९४४ ॥ किंच मणवयणकाया, जे भणिया करणसन्निया तिन्नि । ते घितिमंतस्स गुणाय, होंति दोसाय इयरस्स ।। ८९४५ ।। हा पुरंधिपडिबंध-बंधणं दुहनिबंधणं धुणिउ । सामन्नं पडिवन्ना, धण्णा भवभवण निव्विण्णा ॥८९४६ ॥
॥८९४० ॥
॥८९४२ ॥
॥ ८९४३ ||
॥८९३५|| ॥८९३६ ॥
॥८९३७॥
शीलपालनद्वारे शीलस्वरूपम् ।
॥६८६॥

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