Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
Publisher: Kantilal Manilal Zaveri

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Page 769
________________ संवेगरंगसाला ॥७३१ ॥ ॥९५३४ ॥ ॥९५३५।। रोहीडयम्मि सन्नी, हओ वि कुंचेण खदगकुमारो । तं वेयणमऽहियासिय, पडिवन्नो उत्तम अट्ठ इत्थिणपुर कुरुदत्तो, बिलीफाली व दोणीमंतम्मि । उज्झतो अहियासिय, पडिवन्नो उत्तमं अट्ठ वसीए पलिवियाए, रिट्ठाऽमच्चेण उसभसेणो वि । आराहणं पवनो, सह परिसाए कुणालाए तह वरखुड्डगो वि हु, पाओवगओ सिलायले तत्ते । आराहणं पवन्नो, मयणं व विलीयमाणो वि छिन्नद्वाणे सरिया - जलम्मि सबसे वि तण्डकयदाहो । धणसम्मु खुड्डगो वि हु, अहयसमाही दिवं पत्तो ॥ ९५३६ ॥ समकालमसयपिज्जत - देहरुहिरो वि सुमणभद्दमुणी । तदवारणेण सम्मं, अहियासितो दिवं पत्तो ।।९५३७॥ | मेयजो वि महरिसी, सीसाऽऽवेढेण निग्गयऽच्छी बि । तह कह वि समाहिमकासि, झत्ति जाओ जहं तगडी ॥९५३८ ॥ | भगवं पि महावीरो, बारसवासाई विसहए सम्मं । विविहोवसग्गवग्गं, तेलोके कल्लमल्लो वि ॥९५३९॥ कच्छु जरसाससोसाऽ- भत्तच्छंदऽच्छिकुच्छिवियणाओ । भयवं सणकुमारो, अहियासह सत्त वाससए ।। ९५४०॥ A अरिहन्नओ वि भयवं, पच्चाऽऽगयचेयणो जणणिवयणा । सुकुमालयाए तणुणो, अखमो चरिउ चिरं चरणं ॥ ९५४१ ॥ पायोवगओ धीरो, तत्तसिलाए मुहुत्तमेत्तेणं । सहसा विलीणदेहो, कालगओ गुरुसमाहीए हेमंते रत्तीए, अपाउयंडगा तवस्सिणो लहा । पुरपव्वयंऽतरपहे, आगासे संठिया पडिमं ।।९५४२॥ ।। ९५४३ ।। किं' न सुया ते सुंदर !, चउरो सिरिभद्दवाहुणो सीसा। सीएण विचेदुगा, समाहिणा तह गया सुगई ॥९५४४ ॥ ॥९५३२॥ ।।९५३३ ।। वेदनासहने कुरुदत्तादीनां | दृष्टान्ताः । ॥७३१॥

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