Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
Publisher: Kantilal Manilal Zaveri
View full book text
________________
संवेगरंगसाला
॥७३६॥
किं च तुहणंतखुत्तो, आसी तन्हा भवम्मि तारिसिया । जं पसमेउ सव्वे, नइजलनिहिणो विन तरेखा ।। ९५९६ ।। आसी अनंतखुत्तो, संसारे ते छुहा य तारिसिया । जं पसमेउ सब्बो, पोग्गलकाओ वि न तरेजा ॥९५९७॥ जड़ तारिसिया तन्हा, छुहा य अवसेण ते तया सोढा । धम्मो त्ति इण्हि सवसो, कहमेयाओ न सहसि तुमं ।। ९५९८ ।। १ सुइपाणण अणुसट्टि - भोयणेण य सया उवग्गहियो । झाणोसहेण तिव्वं पि, वेयणं अरिहसे सोदु ॥९५९९ ॥
तथा -
अरिहंतसिद्धकेवलि - पञ्चकख सव्वसंघसक्खिस्स । पच्चक्खाणस्स कयस्स, भंजणाउ वरं मरणं
॥९६०३॥
॥९६००॥ जड़ ता कया पमाणं, अरिहंताऽऽई भवेज खवग ! तए । ता तस्सक्खियमऽरिहसि, पच्चक्खाणं न भंजेउ ।। ९६०१ ॥ सक्खिकयरायहीलण - माऽऽवह नरस्स जह महादोसं । तह जिणवराऽइआसा - यणा वि महदोसमाऽऽवह ||९६०२ ॥ न तहा दोसं पावह, पच्चकखाणमकरितु कालगओ । जह भंजणाउ पावइ, तस्सेव अबोहिबीयकयं संलेहणापरिस्सम-मिमं कयं दुक्करं च सामण्णं । मा अप्पसोक्खहेउ, तिलोगसारं विणासेहि धीरपुरिसपण्णत्तं, सप्पुरिसनिसेविअं इमं घेत्तु । धन्ना निरवेयकूखा, संथारगया विवज ति इय पनविजमाणो, सो पुव्वं जायसंकिलेसो वि । विणियत्तो तं दुकुख, पासिह परदेहदुकूख' च tय माणस महिटियस्स उस्सग्गियं भवे कवयं । अववाइयं पि कवयं, आगाढे होइ कायव्वं १ श्रुतिपानकेन = धर्मश्रवणरूपपानी येन ।
॥९६०४॥
।।९६०५।।
॥९६०६॥
॥ ९६०७||
औत्सर्गिक
कवच
स्वरूपम् ।
॥७३६ ॥

Page Navigation
1 ... 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836