Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
Publisher: Kantilal Manilal Zaveri

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Page 779
________________ संवेगरंगसाला लेश्या-स्वरूपम् जम्बूफलमक्षक दृष्टान्तः च। ॥७४१॥ इय धम्मसत्थमत्ययमणीए, संवेगरंगसालाए। चउमूलद्दाराए, सोग्गइगमपउणपयवीए । ॥९६६३॥ आराहणाए पडिदार-नवगमइए समाहिलामम्मि । भणिय' चउत्थदारे, छटुं झाणं ति पडिदारं ॥९६६४॥ लेसाविसेसउ चिय, सुहअसुहगईओ झाणजोगे वि । जायति जेण तम्हा, लेसादार निदंसेमि ॥९६६५॥ किन्हाऽऽइकम्मदव्वाण, विविहरूवाण सनिहाणेण । पयईए निम्मलस्स वि, फालिहमणिणो ब्व जीवस्स ॥९६६६॥ जंबूफलभक्खगपुरिस-छक्कपरिणामभेयसंसिद्धो। हिंसाऽऽइभावभेओ, भण्णइ लेस त्ति परिणामो ॥९६६७॥ तथाहिएगम्मि वणनिगुंजे, परिब्भमंतेहिं छहिं उ पुरिसेहि। गयणंऽगणऽग्गगविसण-कए व्व उड्ढं पवइडंतो ॥९६६८॥ चक्कलविसालमूलो, सुपक्कफलभरनमंतसाहग्गो । पसरियबहुप्पसाहो, समंतओ गुच्छसंछइओ ॥९६६९।। तह पइगुच्छं पेच्छिज्ज-माणपरिपिक्कसुरसफारफलो। पवणछडच्छोडणझडिय-पडियफलफुल्लतलभूमी ॥९६७०।। एक्को जंबूरुक्खो भुक्खाए खामकुक्खिकुहरेहिं । दिट्ठो अदिट्ठपुल्वो, पच्चक्खं कप्परुकूखो व्व ॥९६७१।। तो जंपिउ पयत्ता, परोप्परं ते जहो अहो! एसो। संपाविओ सुपुन्नेहि, पायवो कह वि अम्हेहिं ॥९६७२॥ ता एह महातरुणो, इमस्स अमओवमाणि एयाणि । खामो खणं फलाई, एवं होउ ति किन्तु कहं ॥९६७३॥ अह तत्थेको जंपइ, आरुहमाणाण जीवसंदेहो। तो छिदिऊण मुले, पाडेउताहे भक्खामो ॥९६७४॥ बीओ बेइ किमिमिणा, तरुणा सव्वंगिएण छिन्नेण । छिदह महल्लसाई, एकं तइओ पुण पसाहं ॥९६७५॥ ॥७४१॥

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