Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
Publisher: Kantilal Manilal Zaveri
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संवेग
रंगसाला
केवलिसमुद्घातस्वरूपम् योग
निरोधभास्वरूपं च ।
७४७॥
तत्तो देसूर्ण पुव्वकोडि-मंऽतोमुहत्तमेत्तं वा। विहरइ अह वेयणिज्जं, अइवयं थोवमाऽऽऽ' च ॥९७४४॥ होज तओ स महप्पा, अंतमुहुत्तम्मि आउगे सेसे । कुणइ समुग्धाय तुल्ल-ठिइकए सेसकम्माण ॥९७४५।। उल्लं संतं वत्थं, विरिल्लिय जह विसुक्कइ खणेणं । संवेल्लियं तु न तहा, तह वेयणियाऽऽइकम्माई ॥९७४६॥ बहुकालकखवणिज्जाई-ऽणुकम वेयणेण किर जाई। खिज्जति ताई णियमा, समवयस्स कुखणेणं पि ॥९७४७॥ इय नीसेसाऽऽवरणाऽ-वगमविय भंतवीरिउल्लासो। आरभइ समुग्धाय', लहुकम्मखयट्ठया तत्थ ॥९७४८॥ चउहि समएहि दंडग-कवाडमंथजयपूरणाणि तओ। कुणइ कमेण णियत्तइ, तहेब सो चउहि समएहि ॥९७४९।। काऊणाऽऽउसमं सो, वेयणिय तह य नामगोत्ताति (ई)। सेलेसिमुवागंतुं, जोगनिरोहं तओ कुणइ ॥९७५०।। बायरमणप्पओगं, वायरकाएण बायरवई च । बायरकाय पि तहा, रुंभइ सुहुमेण काएण ॥९७५१॥ तत्तो सुहुमं मणवइ-जोगं रुंभेत्तु सुहुमकाएण । काइयजोगे सुहुमम्मि, सुहुमकिरिय जिणो झाइ ॥९७५२।। सुहमकिरिएण झाणेण, सुनिरुद्धे सुहमकायजोगे वि । सेलेसी होइ तओ, अबंधगो निच्चलपएसो ॥९७५३।। अवसेसकम्मअंस-कृखयाय पंचकूखरुग्गिरणकालं । वोच्छिन्नकिरियमऽप्पडि-वाइ झाणं झियाइ तओ ॥९७५४॥ सो तेण पंचमत्ता-कालेण खवेइ चरिमझाणेण । अणुइनाओ उबरिम-समए सव्वाउ पयडीउ ॥९७५५॥
चरिमसमयम्मि तो सो, खवेइ वेइजमाणपयडीओ। बारस तित्थयरजिणो, एक्कारस सेससव्वन्नू ॥९७५६॥ || तत्तो अविग्गहाए, गईए समए अणंतरे चेव । पावइ जगस्स सिहरं, खेतं कालं च अफुसंतो ॥९७५७॥
॥७४७॥

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