Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
Publisher: Kantilal Manilal Zaveri

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Page 812
________________ संवेग । शुद्धि-पत्रकम् रंगसाला ७७४॥ १०१ पत्रम् श्लोक: अशुद्धम् ९६ छन्नंतरं निद्दविखन विसंह अवंगहार उवसप्पिउणेवं १२० अक्खुद्धमणो १२३ च्चिए सेवगाहमा १३ १३३ पहूणं १३ १३६ कमेगंते १३ १३८ तुह हयस्स, १४ १४३ रूसिएण ૧ તાડપત્રીય પ્રતમાં પાઠાંતર છે, शुद्धम् च्छन्न तरं निदक्खिन्नतं विसंछु यंगहार उवसप्पिऊणेवं अखुद्धमणो चिय सेवगाहमा ! पहूण कमेणंते तुह, हयस्स रुसिएण पत्रम् श्लोकः अशुद्धम् शुद्धम् १४ १४४ पहरणफडाडोवं पहरणफडाडो १५ १५५ कम्स कस्स जुवइजण जुवईजण १५ . १६२ रयजाणवसुक्खय- रयजाणवसुक्खय कूखोणिरयं, खोणिरयं, १६४ विपक्खक्खएकसहं विपक्खखए. १६४ पाविय भूरिमहं पावियभूरिमहं १६८ अहह अहह ! १६ १६८ विबुवहनिसिद्ध, विबुहनिसिद्ध, १६ . १६८ अकजमेवविहं अकजमेवंविहं, १७६ १८१ कि १२९ अहह ! ॥७७४॥

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