Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
Publisher: Kantilal Manilal Zaveri

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Page 833
________________ संवेगरंगसाला शुद्धिपत्रकम् ॥७९५॥ पत्रम् श्लोकः अशुद्धम् शुद्धम् पत्रम् ७३३ ९५६३ अन्नं अन्ने । ७५६ ७३४ ९५८१ वियोगावहुरेसु वियोगविहुरेसु | ७६१ ७३५ ९५८४ रुहिरररस० रुहिररस० ७६३ ७३७ ९६२० विसयाऽमिलासो विसयाऽभिलासो | ७६३ ९७९१ ०पउणवयवीए पउणपयवीए ७६४ ७५० ९७९२ समाहिलभम्मि समाहिलामम्मि | ७६६ ७५४ ९८५० सुरासुऽरतिलोय ! सुराऽसुरतिलोय ! | ७७१ श्लोकः ९८७९ म ९९६७ ९९७६ ९९८७ ही १८ अशुद्धम् । एप विकुवणेन विकुर्वणेन उप्पजंतनिरंतर- उप्पजतनिरंतर होहो होही ०रणंतमाण० ०रणंतमणि स्थरविस्कृता स्थविरकृता राहणसाद्गरे- रोहणसद्गिरे ॥७९५॥ 5

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