Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
Publisher: Kantilal Manilal Zaveri
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संवेगरंगसाला
परिष्ठापनदिकफलं नक्षत्रादिविधिःच।
७५२॥
मासकप्पं. वासावासं व साहणो ठंति । पढम चिय गीयत्था. तत्थ महाथंडिले पेहे ॥९८१२॥ दिसि अवरदकिखणा १ दकिखणा २ य, अवरा ३ य दक्षिणापुब्बा ४ । अवरुत्तरा ५ य पुव्वा ६, उत्तर७ पुव्वुत्तरा चेव८॥
॥९८१३॥ पढमाए अन्नपाणं, सुलहं बीयाए दुल्लहं होइ । उवही पुण तइयाए, नत्थि चउत्थीए सज्झाओ ॥९८१४॥ पंचमियाए कलहो, गणमेओ ताण होइ छट्ठीए । सत्तमदिसि गेलन, मरणं पुण अट्टमीए उ ॥९८१५॥ पढमदिसावाघाए, बीयाऽऽईणं पि सो गुणो होइ । कमसो सव्वासु तओ, दिसासु महथंडिले पेहे ॥९८१६॥ जंवेलं कालगओ, तव्वेलंगुट्ठमाऽऽइ बंधेजा। छेयणजग्गण वसभा, कुणंति धीरा सुयरहस्सा ॥९८१७।। वन्तरमाऽऽई वि तयं, देहम हिद्वेज तेण उडेजा। आगमविहिणा धीरेहि, उवसमो तस्स कायव्वो ॥९८१८॥ दोनि य दिवइडभोगे, दब्भमया पुत्तला य कायव्वा । समभोगे पुण एगो, अवड्ढभोगे न कायव्यो ॥९८१९॥ तिन्नेव उत्तराई, पुणव्वसू रोहिणी विसाहा य । एए छन्नक्खत्ता, पणयालमुहुत्तसंभोगा
॥९८२०॥ सयभिसया-भरणीओ, अद्दा अस्सेस साइ जेट्ठा य । छ इमे अवड्ढभोगा, समभोगा सेसनक्खत्ता ॥९८२१॥ जत्तोहुत्तो गामो, तत्तो सीसं ठवेत्तु तं घेत्तुं । गच्छंति थंडिलं पति, अपच्छओ ते नियच्छंता ॥९८२२॥ सुत्तत्थतदुभयविऊ, पुरओ घेत्तण पाणगकुसे य । गच्छइ य तणाई सो, समाई सव्वत्थ संथरइ ॥९८२३॥ विसमा जइ होज तणा, उवरि मज्झे व हेट्टओ वा वि। मरणं गेलन्नं वा, ता गणधरवसभमिक्खूण ॥९८२४॥
॥७५२।।

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