Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
Publisher: Kantilal Manilal Zaveri
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संवेगरंगसाला
शिष्यैः पृष्टेन गौतमेन महसेनस्य भाविभवकथनम् ।
॥७६३॥
अह थेरेहि भणियं, भयवं! एत्तो कहि स उववनो। कइया य निहयकम्मो, निव्वाणं पाविही कहसु ॥९९६३॥ तिहुयणभवणऽभंतर-विस्सुयजसवीरनाहसिस्सेण । पढमेण तओ भणिय, एगग्गमणा णिसामेह ॥९९६४॥ सो महसेणमुणिवरो, सम्मं आराहणाए थिरचित्तो। सुरवइकयप्पसंसा-कुवियाऽमरविहियविग्यो वि ॥९९६५।। झाणाउ निमेसं पि हु, अचलंतो मंदरो व्व काऊण । कालं सव्वट्ठम्मि, भासुरबोंदी सुरो जाओ ॥९९६६॥ आउखएण तत्तो, चविऊणं एत्थ जंबुदीवम्मि । उप्पजंतनिरंतर-जिणचक्किदसारवग्गम्मि
॥९९६७॥ पुवविदेहे वासे, वासवपुरिमणहराए नयरीए । अवराजियाए जियवेरि-वग्गविकंतकित्तिस्स ॥९९६८॥ कित्तिधरधरावइणो, वयणोहामियमयंकबिचाए । बिबाहराए देवीए, विजयसेणामिहाणाए
॥९९६९॥ मुहपविसंतचिरुग्गय-संपुग्नमयंकसुमिणकयसूओ। गम्भे पाउन्भविही, पुत्तत्तणं महप्पा सो
॥९९७०॥ अट्ठमराईदिय-समहियमासेसु नवसु विगएसु । होही य तस्स जम्मो, सोहणनकूखत्ततिहिजोगे ॥९९७१॥ अश्चंतपुष्णपगरिस-आगरिसियमाणसा य संनिहिया। देवा तज्जम्मम्मि, पडिसंतरयं दिसाभोगं ॥९९७२॥ वायतमदपवणं, कीलंतजणं समतओ का। कुंभग्गसो खिविस्संति, पवररयणाई नगरीए। ॥९९७३॥ अह मंगलमुहलमिलंत-वारविलयासहस्सरमणीयं । रमणीयमणिविभूसण-भूसियनीसेसनयरजणं ॥९९७४॥ नयरजणदिजमाण-प्पभूयधणतुट्ठमग्गणयलोग। मग्गणलोउक्कित्तिज-माणपायडगुणप्पसरं
॥९९७५॥ गुणपसरसवणसरहस-मिलंतसामंतचक्कक्रयतोस । वद्वावणयं होहो, महया रिद्धीसमुदएणं
॥९९७६।।.
॥७६३॥

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