Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
Publisher: Kantilal Manilal Zaveri

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Page 800
________________ संवेगरंगसाला | महसेनस्य काल-करणं सर्वाथसिद्धी उत्पत्तिः च। ॥७६२॥ महसेणो वि सममणो, माणघमाणेसु दुक्खसुक्खेसु । सविसेसमुत्तरोत्तर-वड्ढतविसुद्धपरिणामो ॥९९४९॥ अञ्चतसमाहीए, कालं काऊणं भासुरो देवो । तेतीससागराऊ, जाओ सब्वट्ठसिद्धम्मि ॥९९५०|| अह कालगयं तं जाणि-ऊण थेरा जहाऽऽगमविहीए । तकालोचियकायव्य-वेइणो मुणियभवभावा ॥९९५१॥ तस्स सरीरं तसबीज-पाणहरियंऽकुराऽऽइणा रहिए। पुव्वपडिलेहिए थं-डिलम्मि सम्म परिठवेंति ॥९९५२॥ तयणंतरं पडिग्गह-पमुहधम्मोवगरणमावि तस्स । घेत्तुं अतुरियचवलं, गोयमसामि समल्लीणा ॥९९५३॥ तिपयाहिणदाणपुरस्सरं च, तं वंदिऊण पणयसिरा । उवणीयतदुवगरणा, एवं भणि समाढता ॥९९५४॥ भयवं स तुम्ह सीसो, खंतिखमो विजियदुजयाऽणंगो। पम्मुक्कसव्वसंगो, वज्जियनीसेससावजो ॥९९५५॥ पयईए चिय सरलो, पयईए चिय सुचिमसामनो। पयईए य विणीओ, पयईए चिय महासत्तो ॥९९५६॥ सम्मऽहियासियदुस्सह-परीसहो सरियपंचनवकारो। आराहणमाऽऽराहिय, निस्सामन्म दिवं पत्तो ॥९९५७।। अह मालइमालाहि व, दसणपहाहि पसाहयंतो व्व । थेरे गोयमसामी, महुरगिराए समुल्लवइ ॥९९५८॥ हंहो महाणुभावा!, सम्म निजामिओ स तुम्भेहिं । जाणियजिणवयणाणं, एवं चिय बट्टिङ' जुतं ॥९९५९॥ . असहायसहायतं, करेंति जं संजम करेंतस्स । एएण कारणेणं, नमणिजा साहुणो होति ॥९९६०॥ न य एत्तो उवयारो, अन्नो वि हु विजए जए सारो। जसुवटुंभो कीरइ, पञ्जताऽऽराहणासमए ॥९९६१॥ धन्नो य सो महप्पा, जेणं आराहणासुनावाए। दुहमयरनियरकिनो, तिम्रो ब्व भवनवो भीमो ॥९९६२॥ ॥७६२॥

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