Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
Publisher: Kantilal Manilal Zaveri

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Page 780
________________ संवेगरंगसाला दृष्टान्तस्य उपनयः ग्रामविलुम्पकदृष्टान्तः च। ७४२॥ गोच्छे बेइ चउत्थो, पंचमओ भणइ भुंजह फलाई । छट्ठो भणइ सयं चिय, पडिए भूमीए भकखामो॥१६७६॥ दिद्रुतस्सोवणओ, जो भणइ तत्थ छिदिमो मूला । सो वट्टइ कण्हाए, साहाछिदावगो य नरो ॥९६७७॥ नीलाए लेसाए, पसाहछि दावगो कवोयाए । गोच्छच्छेदुवएसी, बट्टइ पुण तेउलेसाए। ॥१६७८॥ तग्गयफलगाही पुण, पम्हाए बट्टइ य सुक्काए । सयमेव धरणिणिवडिय-फलगहणुवएसदाणपरो ॥१६७९॥ अह वा गामविलंपग-छच्चोरा ताण जंपए एगो। दुपयं चउप्पयं वा, जं पासह हणह तं सव्वं ॥९६८०॥ बीओ य माणुसाई, पुरिसे च्चिय तइयओ हणावेइ । सत्थकरे उ चउत्थो, पंचमगो पहरमाणे उ ॥९६८१।। छट्ठो भणेइ तुम्हे, एकं ता हरह निद्दया दविणं । अन्न मारेह जणं, अहह ! महापावमेयं ति ॥९६८२।। ता मा करेह एवं, दविणं चिय लेह ज १चए पत्ते । तुम्ह पुण हवइ एयं, उवसंहारो इमो तेसि ॥९६८३॥ वट्टई सो कण्हाए, जो जंपइ हणह सव्वगामं ति । एवं कमेण सेसा, जा चरिमो सुक्कलेसाए ॥९६८४॥ किण्हा नीला काऊ, लेसाओ तिन्नि अप्पसत्थाओ। चयसु सुविसुद्धकरणो, संवेगमऽणुत्तरं पत्तो ॥९६८५॥ तेऊ पम्हा सुक्का, लेसाओ तिनि सुप्पसत्थाओ। उवसंपन्जसु कमसो, संवेगमऽणुत्तरं पत्तो ॥९६८६॥ परिणामविसुद्धीए, लेसासुद्धी उ होइ जीवस्स । परिणामविसुद्धी पुण, मंदकसायस्स नायव्वा ॥९६८७॥ मंदा होंति कसाया, बाहिरदव्वेसु संगरहियस्स । पावइ लेसासुद्धि', तम्हा देहाऽऽइसु असंगो ॥९६८८॥ १ चए = च्यबे = जन्मान्तरे इत्यर्थः । ।७४२॥

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