Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
Publisher: Kantilal Manilal Zaveri
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संवेगरंगसाला
॥७३७॥
इय गुणमणिरोहणागिरि - धराए संवेगरंगसालाए । चउमूलद्दाराए, सोग्गइगमपउणपयवीए आराहणाए पडिदार - नवगमइए समाहिलाभम्मि । भणियं चउत्थदारे, कवयं ति चउत्थपडिदारं अह परकञ्जन्भुञ्जय - निजामयगुरुगिराए कयकवओ । जं कुणइ तं इयाणि, समयादारेण दंसेमि अतिनिबिडकवयजुत्तो, सुहडो व्व झडत्ति आरुहेऊण । निययपइनाकुंजर - माऽऽराहणरणमुहम्मि ठिओ उच्छालियउच्छाहो, पासत्थपदंतसाडुबंदीहि । वेरग्गगंथवायण - रणतूररवेण कयहरिसो संवेगपसमनिव्वेय - मुहदिव्वाऽऽउहप्पभावेण । निद्धाडि तो उन्भड अट्टमयद्वाणसुहडोलि हासाऽऽइछकदुकंत - करिघडं उन्भर्ड पि विइड तो । पडिखलमाणो इंदिय-तुरंगथङ्कं पयतं दुस्सहपरिसहपाइक – चक्कमऽच्चुक्कड' पि विजयंतो । मोहमहारायं पि हु, निहणंतो तिजयदुज्जेयं खवगो पडिचकजया, पावियनिरवजजयजसपडागो । सव्वत्थ अपडिबद्धो, उवेइ सव्वत्थ समभावं तथाहि
सव्वेसु दव्वपञ्जव - विधीसु निच्च ममत्तदोसजढो । विप्पणयदोसमोहो, उवेइ सव्वत्थ समभावं संजोगविप्पओगेसु, चयइ इट्ठेसु वा अणिट्ठेसु । रइअरऊसुगतं, हरिसं दीणत्तणं च तहा मित्सु य नाईसु व सीसे साइम्मिए कुले वा वि । रागं वा दोसं वा, पुव्वुष्पन्नं पि सो चयइ भोसु देवमाणूस्स- एस न करेइ पत्थणं स्ववओ । मग्गो विराहणाए, भणिओ विसयाऽमिलासो जं
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समताद्वार
स्वरूपम् ।
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