Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
Publisher: Kantilal Manilal Zaveri
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संवेगरंगसाला
उपसर्गवर्गेऽपि कम्बलशम्बलादीनां दाढ्र्येन अवस्थानम्।
॥७२९॥
को नाम भडो कुलजो, माणी थूलाइऊण जणमझे । जुज्झे पलाइआवडिय-मेत्तओ चेव अरिभीओ ॥९५०५॥ चलाइऊण पुव्वं, माणी संतो परीसहाऽरीहि । आवडियमेत्तगो चेव, को विसनो भवइ साहू ॥९५०६॥ धूलाइयस्स कुलयस्स, माणिणो रणमुहे वरं मरणं । न य लज्जणयं काउं, जावज्जीवं पि जणमझे ॥९५०७॥ समणस्स माणिणो उज्जयस्स, निहणगमणं पि होउ वरं । न य नियपइन्नभंगेण, इयरजणजपणं सहियं ॥९५०८॥ एक्कस्स कए नियजीवियस्स, को जंपणं करेज्ज नरो। पुत्तयपोचाऽऽईणं, समरम्मि पलायमाणो ब्व ॥९५०९॥ तह अप्पणो कुलस्स य, संघस्स य मा हु जीवियत्थी उ। कुणसु जणे जंपणयं, जाणियजिणवयणसारो वि ।।९५१०॥ जइ नाम तहऽनाणी, संसारपवट्टणाए लेसाए । तिव्वाए वेयणाए, समाउला तह करिति घिति ॥९५११।। कि पुण जइणा संसार-सव्वदुक्खक्खयं करेंतेण । बहुतिव्वदुक्खरसजाण-एण न घिई करेयव्वा ॥९५१२॥ तिरिया वि तोडपीडा-विहुरियदेहा वि गोणपोयलया। कि अणसणं पवन्ना, कंबलसंबला सुया न तए ॥९५१३।। तुच्छतणू तुच्छबलो, पयईए चेव तुच्छतिरिओ य । अणसणविहिं पवनो, वेयरणी वानरो य तहा ॥९५१४॥ खुद्दो वि पिपीलियविहिय-तिन्ववियणो वि जायपडिबोहो। मासद्धमऽणसणविहि, पडिवनो कोसियो सप्पो॥९५१५॥ जम्मन्तरजणणी को-सलस्स वग्धीभवम्मि लद्धसुई । तिरिया वि छुहावेयण-मऽगणिय तह संठियाऽणसणे ॥९५१६॥ जइ ता पसुणो वि इमे, अणसणमऽकरिंसु थिरसमाहिपरा। ता नरसीहो वि तुम, सुंदर! तं कीस न करेसि ॥९५१७॥ देवीदारेण तहो-बसग्गजोगे सुदंसणगिही वि । अवि मरणमझवसियो, पडिवनवया न उण चलिओ ॥९५१८॥
॥७२९॥

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