Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
Publisher: Kantilal Manilal Zaveri
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संवेगरंगसाला
॥७२४ ॥
॥९४३८||
॥९४३९॥
॥९४४० ॥
॥९४४२॥
समस मित्तचित्तो, समतणमणिलेडुकंचणो धीम। पइखणविलसंतमणो- समाहिरसपयरिसमुवे तो सोच्चा दट्ठूणं भुंजिऊण, परिजि घिऊण फासित्ता । अच्चताऽसुंदरसुद-रे वि सदाऽऽणो विसए अरइरईणमकरणा वत्थुसहावाऽवबोहजोगेण । सारयसरियाजलसुप्प - सन्तचित्तो महासत्तो गुरुदेवयापणाम, काउ' उचियाऽऽसणडिओ चेव । एसो स चंदवेज्झग-समओ ति मणे विचिते तो ॥९४४१॥ निस्सेसक म्मदुमवण - विसेसपच्चलदवानलुत्थाणं । सम्म धम्मज्झाणं, झाएजा तत्थ सो अहवा संपुन्नचंदवयणं, उवमाऽइकंतरूवलायष्णं । परमाऽऽणंदनिबंधण - मऽइसयसय समुदयमय च चकं कुसकुलिसज्झय - पामोक्खऽकूखंडलकूखणधरंऽगं । सव्युत्तमगुणकलियां, सव्युत्तमपुष्णरासिमय सरयससिकरवलच्छ-छत्ततिगाऽसोगतरुतलनिलीणं । सिंहासणोवविहूं, दुहुहिघणघणिय निग्घोसं धम्मम सदेवासुराए, परिसाए वागरेमाणं । सव्वजगजीववच्छल - मऽचि ततमसत्तिमाहप्पं सत्वयारपवित्तं, समत्थकलाणकारणमवंशं । सिवबुद्धबंभपमुहा - भिहाणधेयं परेसि पि जुगवं सव्वं नेयं, निउणं नाणा मुर्णतपासंतं । किर मुत्तिमंतधम्मं, झोएज जिणं जगपईवं अहवा तस्सेव जिणस्स, भगवओ तिहुयणस्स वि पमाणं । झाएज सुयं दुहतावि - यंगिपीऊसवरिसं व ॥९४४९॥ जड़ पुण गेलण्णवसा, न हु 'सक्का एत्तियं भणेउ' सो । “असियाउस" त्ति वंजण-पणगं पि मणस्मि झाएजा
।।९४४८ ।।
||९४५० ||
१
सका = शक्नुयात् ।
॥९४४३ ॥
॥९४४४॥
॥९४४५॥
॥९४४६ ॥
॥९४४७।।
धर्मध्यानचिन्तनम् ।
॥७२४ ॥

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