Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
Publisher: Kantilal Manilal Zaveri

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Page 761
________________ संवेगरंगसाला विशेषेण सम्यक्त्वादीनां स्वीकारः । ॥७२३॥ बंदामि सीलसोरभ भरविजियवरगुरूण सुगुरूण । भवभीयज तुसरणे, चरणे कल्लाणकुलभवणे ॥९,४२४॥ पुट्विं पि पणयजणवच्छलाण, संविग्गणाणरासीणं । कालाऽणुरूवकिरिया-कलावजुत्ताण थेराणं ॥५४२५॥ पामूलम्मि सम्म, रम्मं धर्म पवजमाणेणं । सवं पच्चकूखेयं, पच्चक्खायं मए आसि ॥९४२६॥ पडिवज्जियव्यय पुण, पडिवन्नं अह विसेससंविग्गो। तं चेव संपय' पुण, सविसेसतमं करेमि अहं ॥६४२७॥ तत्थ पढम पि सम्म, मिच्छताओ पडिक्कमित्ताणं । तह सविसेसतममऽहं, काउं सम्मत्तपडिवत्ति ॥६४२८। तत्तो पडिक्कमित्ता, अट्ठारसपावठाणगेहितो। विहियकसायनिरोहो, अट्ठमयट्ठाणपरिवजी ॥८४२९॥ परिचत्तपमायपो, दवाऽऽइचउक्कमुक्कपडिबंधो । जहसंभवंतसुहुमा-ऽइयारपइसमयसोहिपरो ॥८४३०॥ पुणरुत्तुच्चरियअणुव्वओ य, कयसत्तखामणो धणिय । पुव्वुत्ताऽणसगक्कम-कयसव्वाऽऽहारपरिहारो ॥८४३१॥ नाणोवयोगपुव्वं, पइकिच्चं निच्चमेव वड्ढ(९)तो। पंचाऽणुव्वयस्कूखा-परायणो सीलसाली य ॥८४३२॥ इदियदमप्पहाणो, निचमणिचाऽऽइभावणापरमो। साहेमि उत्तिमटुं, एवं कयकिच्चपडिवत्ती ॥८४३३॥ जीवियमरणाऽऽसंसप्पयोग-पडिवाणुज्जु(ज)ओ मइम । इहपरलोगाऽऽसंस-पओगमऽवि परिहरंतो य ।१४३४॥ कयकामभोगविसयाऽऽ-संसापरिवजणो पसमरासी। पंडियमरणरणाऽवणि-विजयपडागागहणसुहडो ॥८४३५॥ पच्चक्खायतहाविह-पच्चकखाणाऽरिहऽत्थसत्थो सो। तह कायवमिणं, ती पडिवन्नपवजियव्वो य ॥९४३६॥ नवनवतकालसमुच्छलंत-संवेगपयरिसगुणेण । अप्पुव्वमिवऽप्पाणं, पए पए परिकलंतो य ॥६४३७॥ । ॥७२३॥

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