Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
Publisher: Kantilal Manilal Zaveri
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संवेगरंगसाला
दशानां स्थानानां | स्वरूपम् धर्मगुरोः दुलभत्वं च।
॥६८४॥
सुत्तत्थं च पयासइ, निस्सेसनएहिं जिणमयन्नू य । उस्सग्गजवायाणं, जहट्ठियं दंसइ विसेसं ॥८९०५॥ संविग्गो सब्भावं, कहेइ इइ पच्चओ न इयरम्मि । चरणकरणं चयंतो, चएज सव्वंपि ववहारं ॥८९०६॥ गुणसुट्टियस्स वयणं, घयमहुसित्तो ब्व पावओ भाइ । गुणहीणस्स न सोहइ, नेहविहीणो जहा दीवो ॥८९०७॥ आयारे बतो, आयारपरूवणे असंकेओ। आयारपरिभट्ठो, सुद्धचरणदेसणे भइओ
॥८९०८॥ भवसयसहस्सलद्ध, जिणवयणं भावओ चयंतस्स । जस्स न जायं दुकख, न तस्स दुकूख परे दुहिए ॥८९०९॥ जहथाममुज्जमतो, संवेगं कुणइ तह य मज्झत्यो। अब्भुट्ठिएऽणुगिण्हइ, कयकरणो गाहणाकुसलो ॥८९१०॥ सत्तुवयारम्मि रओ, थिरपरिचियमऽत्थसुत्तमऽगिलाए । पुणरुत्तवाणिदाणाऽऽइ-णाउ सेहे करावेइ ॥८९११॥ सेवेइ नाऽववाय, मियाण पुरओ दढपइन्नो त्ति [दारं] । अणुवत्तगो अणुवत्तइ, जहजोग्गं बहुविहविणेए ॥८९१२॥ मइमं जाणइ नियमा, उस्सग्गऽववायगोयरमऽसेसं । परिणामगाऽऽइसीसे य, विविहमयदेसणाजोग्गे ॥८९१३॥ पुढवि पिव सव्वसहं, मेरुं व अपियं ठियं धम्मे । चंदमिव सोमलेस, तं धम्मगुरुं पसंसति ॥८९१४॥ कालन्नु देसन्नु, नाणाविहहेउकारणविहन्तुं । संगहुवग्गहकुसलं, तं धम्मगुरुं पसंसंति
॥८९१५॥ लोइयवेइयलोउत्तरेसु, नाणाविहेसु सत्थेसु । लट्ठ गहियटुं, तं धम्मगुरुं पसंसंति
॥८९१६॥ धम्मगुरुसहस्साई, लहइ य जीवो भवेसु बहुएसु । कम्मेसु सिप्पेसु य, अन्नेसु य धम्मचरणेसु ॥८९१७॥ जो पुण जिणप्पणीए, निग्गंथे पवयणम्मि धम्मगुरू । संसारमोकूखमग्गस्स, देसी स इह दुल्लभो ॥८९१८॥
॥६८४॥

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