Book Title: Samveg Rangshala
Author(s): Jinchandrasurishekhar, Hemendravijay, Babubhai Savchand
Publisher: Kantilal Manilal Zaveri

View full book text
Previous | Next

Page 757
________________ संवेगरंगसाला ।।७१९ ॥ ।।९३७१।। ॥९३७२ ॥ ॥९३७३॥ एग दियाsssभावं, गएण एगि दियाऽऽइजीवाणं । तह जलयस्थलयरखह - परतणं कह वि पत्तेणं ॥ ९३६८॥ जं किंचि जलयराऽऽईण, चेव मणवयणकायजोगेहि । तिरिएसु कयं मणयं पि, मंगुलं तं पि निंदामि ॥ ९३६९॥ तह मणुसु वि रागा, दोसा मोहा भया व हासा वा । सोगाओ कोहमाणेहि, मायाउ लोभतो वा वि ।।९३७० ॥ एत्थ भवे अन्नत्थ व भवम्मि जं दोमणस्समवहसणं । तञ्जणतालणबंधण- निब्भच्छणमारणं तं च सारीरमाणसाग- पीडसंपाडणं कयं कह वि । कारियमऽणुमयमऽवि तं, तिविहेणं चैव निंदामि तह मंताssसामत्थओ य, देवेसु जं पि अवरुद्ध | पत्ताऽवयारचावण - थंभणकीलणपयोगेहि अव तिरियत्तपत्तेण चैव किर तिरियनरसुराणं जं । तह पत्तनरत्तेण य, तिरिनरसुरगोयरं जं च पत्तसुरत्तेणं पुण, नेरइयतिरिक्खनरसुराणं जं । सारीरमाणसं वा, विप्पियमुप्पाइयं किं पि सम्मं तं पि समत्थं, तिविहंतिविहेण ते वि सयमऽवि य । खामेमि तह खमामि य, स एस मह खामणा कालो चिट्ठउ ता पावमईए, पावमाऽऽहेडगाऽऽह जं विहियं । धम्ममईए वि कथं, पावं पावाऽणुबंधकरं सुरहिसुयवीवाहण - जागऽग्गिट्टियपवापयाणं जं । जुत्तहलगो महीलोह - हेम तिलधेणुदाणं जं जं व इह कुंडकूवाs - रघट्टवावीतलायखायाऽऽई । गोतरुपूरणचंदण - कप्पासाऽऽपयाणाऽऽई देवे अदेवबुद्धी, जा य अदेवम्मि देवबुद्धी य । अगुरुम्मि वि गुरुबुद्धी, गुरुम्मि पुण अगुरुबुद्धी य ॥ ९३८० ॥ तत्ते अतत्तबुद्धी, जा य अतत्ते वि तत्तबुद्धी य । काराविया कया अणु-मया य जइ कह वि कइया वि ॥ ९३८१ ॥ ॥९३७४ ।। ।।९३७८।। ।।९३७९॥ ।। ९३७५ ।। || ९३७६ ॥ ।।९३७७॥ एकेन्द्रियभवादिषु गतेन कृतविराधनायाः क्षामणा । ॥७१९॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836