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एवं सृजन धार्मिता का ही यह सुपरिणाम है कि एक श्रमणी के गौरव रूप में इतना श्रेष्ठ अभिनन्दन ग्रन्थ तयार हो सका ।
इस महान कार्य में गणीप्रवर श्रीमणिप्रभसागरजी महाराज का मार्गदर्शन, सम्प्रेरणा तो उसी प्रकार रही है, जिस प्रकार ज्योति को प्रज्ज्वलित होने में तेल और बाती का संयोग-सुयोग ।
हमें अत्यधिक प्रसन्नता और गौरव है कि इस महान ग्रन्थ के प्रकाशन में पूज्य प्रवर्तिनी श्रीजी के संसारपक्षीय परिवार ने महत्वपूर्ण आधारभूत भूमिका निबाही है। पूज्य प्रवर्तिनी श्रीजी का जन्म जयपुर के लूनिया परिवार में हुआ। आज आपके परिवार में सभी प्रकार की समृद्धि, सम्पन्नता और सुसंस्कारिता देखी जाती है । आपके परिवार के प्रमुख सदस्य, श्रीविजयकुमार जी, श्री पुखराजजी, माणकचन्द जी सुरेशकुमारजी, श्रीमती रत्नाजी, सायरजी, पन्ना सकलेचा आदि समस्त परिवार ने इस अभिनन्दन ग्रन्थ को सम्पन्न कराने में न केवल आर्थिक किंतु सम्पूर्ण भावनात्मक सहयोग भी प्रदान किया है ।
श्रीपुखराज जी लूनिया अत्यन्त उत्साही, मृदुभाषी, मिलनसार एवं धार्मिकवृत्ति के धनी है । क्रियात्मकता आपका विशिष्टगुण है । इसी विशिष्ट गुण के कारण आपने रत्न व्यवसाय में देश और विदेश में अपना विशिष्ट स्थान बनाया है । सन् १९६० में ये तेरापंथ युवक परिषद जयपुर के मंत्री पद पर आसीन हुए थे तथा सन् १६६७ में आयोजित सभी जैन सम्प्रदायों की अखिल भारतीय कान्फ्रेंस के सह संयोजन का दायित्व आपने कुशलता से निभाया । युवावस्था ही में आपने आचार्य श्री तुलसी की प्रेरणा से “अणुव्रत" आचारनिष्ठा को अपना लिया था । धर्म प्रचार का कार्य आप अनवरत चलाते आ रहे हैं । न्यूयार्क शहर में स्थापित " जैन सेन्टर " के आप जन्मदाता सदस्य एवं उपसभापति रह चुके हैं। यह श्री पुखराज जी की ही प्रेरणा एवं अनवरत परिश्रम का फल है कि प्रवर्तिनी श्रीसज्जन श्री जी का "अभिनन्दन ग्रन्थ" प्रकाशित हो रहा है । साधुजनों का साधुत्व, उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व प्रचारित प्रकाशित करना भी निसंदेह साधुवाद की ही पात्रता रखता है ।
श्री पुखराजजी के छोटे भाई माणकचन्दजी लूणिया भी अत्यन्त क्रियाशील, अनुभवी व्यापारी एवं धार्मिकवृत्ति के हैं । रत्नव्यवसाय में आपने भी अपने कीर्तिमान स्थापित किये हैं । अल्पभाषी किन्तु चिंतनशील माणकचन्दजी एवं उनकी सुशीला पत्नी सायरजी लूनिया ने भी ग्रन्थ सम्पादन में अपना पूरा-पूरा योगदान दिया । निस्संदेह आप धन्यवाद के पात्र हैं । एक अत्यन्त प्राचीन ( अनुमानत: २५०० वर्ष ) जैन मन्दिर के जीर्णोद्वार में भी संघ के साथ आप पूर्ण प्रयत्नशील है । दोनों ही भाइयों ने अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशन में अपना पूरा-पूरा सहयोग दिया है ।
श्रीपुखराज चन्दजी लूनिया एवं उनकी धर्मपत्नी श्रीमती रत्ना लूनिया ने तो रात-दिन का अथक श्रम करके अतीव सुरुचिपूर्वक इस कार्य को सम्पन्न कराया है । अतः हम आपके तथा समस्त लूनिया परिवार जयपुर के विशेष आभारी है ।
साथ ही विद्वसंपादक मंडल एवं सभी सहयोगी सज्जनों के प्रति भी हम कृतज्ञ हैं । हमें अत्यन्त गौरव व प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है, कि पूज्य प्रवर्तिनी सज्जन श्री जी महाराज का अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित करवाने का सहज श्रेय हमारे खरतरगच्छ श्री संघ को प्राप्त हो रहा है। हम श्री संघ की ओर से पूज्य प्रवर्तिनी जी म. का पुनः पुनः वन्दन अभिनन्दन करते हैं ।
जतनकंवर गोलेच्छा
(अध्यक्ष)
Jain Education International
उत्तमचन्द बडेर
(मन्त्री)
श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ श्री संघ, जयपुर ।
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