Book Title: Sagar ke Moti
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 6
________________ प्रकाशकीय सिद्धान्त चक्रवर्ती, सर्वश्रुत वारिधि प्रज्ञामूर्ति पूज्य गुरुदेव उपाध अमरमुनिजी महाराज गहन विचारक, तत्त्व - चिन्तन के साथ - साथ स्वभाव से कवि भी हैं। कवि हृदय कोमल, मधुर एवं स्निग्ध । और होता है विराट् । इसलिए कवि जीवन का द्रष्टा एवं स्रष्टा हो यह विशाल दृष्टि एवं उदात्त विचार पूज्य गुरुदेव के साहित्य में यत्र सर्वत्र व्याप्त है। पूज्य गुरुदेव की लेखनी तत्त्व, दर्शन एवं आगम जैसे गंभीर विषयों तक ही सीमित नहीं रही, उन्होंने साहित्य को सभी विधाओं पर कलम चलाई है। ____भले ही कथा - कहानी हो, रूपक हो, काव्य - कविता हो, संस्मरण हो, दैनन्दिनी (डायरो) हो, उसमें उनका ज्योतिर्मय चिन्तन हर पंक्ति में आलोकित है, जो जीवन को सही दिशा - दर्शन देता है । "सागर के मोतो" उनके चिन्तन का महत्त्वपूर्ण संकलन है। विदुषी साध्वी श्री शुभम्जी ने इसका संकलन किया है । सर्व - प्रथम कुछ लघु कथाएँ हैं, फिर मुवतक हैं और अन्त में है 'अमर डायरो' । दर्शनाचार्य महासती श्री चन्दनाजी ने प्राक्कथन लिखने की महत्ती कृपा की एवं साध्वी श्री चेतनाजो ने प्रूफ संशोधन में सहयोग दिया, उसे भुला नहीं सकते । [ ५ ] भुला नहीं सकते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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