Book Title: Sachitra Saraswati Prasad
Author(s): Kulchandravijay
Publisher: Suparshwanath Upashraya Jain Sangh Walkeshwar Road Mumbai
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प्राप्त करना हो उसको ही यथायोग्य इस मार्ग में आहिस्ते आहिस्ते अनुभूत पुरुषों के पास बैठकर मार्गदर्शन कृपा-प्रसाद लेकर आगे बढना उचित है, उसमें भी जो संयमी-संसार विमुख-वैराग्यवान् परमार्थी हो, उनके लिये ही देव-देवी की मन्त्राराधना ठीक है। संसारीको नहीं।
सम्यग्दृष्टि देवों की ही उपासना करनी चाहिये। उनकी ही सहायता-सलाह काफी होती है। इस ग्रन्थमें जैनेतरेकी जितनी भी बातें संग्रह की है, स्तोत्र मन्त्र-यन्त्रादिकी सब बाते केवल संग्रहार्थे ही है उसमें ज्यादा गहरा जाना / आराधना करना अच्छा नहीं है।
सम्पादक जिम्मेदार नहि है।
महामन्त्राधिराज नवकार मन्त्र के अलावा कुछ भी नही है, वे सर्वोत्तम सर्वाधिक है। इधर अन्य सभी बातें प्रस्तुत की है वह केवल तद् विषया स्वरूप ही किंचित् किंचित् मन्त्रादि प्रसिद्ध किये है यह सभी श्रुत विषय के जिज्ञासु साधकोके लिये और माँ की भक्ति के लिये यत्किंचित् प्रयास किया है, फिर भी जो कोई अनधिकृत चेष्टा करेगा और अनिष्टका भोग बनेगा तो उसमें सम्पादक जिम्मेदार नहीं रहेगा। इस विषयमें गीतार्थ ज्ञानी-गुरु भगवंतकी आज्ञाके बिना कुछ नहीं करना चाहिये।
विद्याप्रभावक अनुभूत सिद्ध यन्त्र ग्रन्थके यन्त्र विभागमें अनुभूत और परमप्रभावक सोलह (१६) से अधिक यन्त्र प्राथमिक जानकारी के साथ दिये गये है, यन्त्रोमें जो १-२-३ आदि अंक लिखे गये हैं वह मंत्र देवताको गुह्य स्वरूप माने जाते है अंकाक्षरोकी संयोजना भी निश्चित रुप से हुई है, उसमें भी प्रथम के दो यन्त्र, सारस्वत चिंतामणी यन्त्र, त्रिपुराभैरवीके पत्र मे से उद्धृत और विद्या प्राप्तिका यन्त्र बहुत ही प्रभाविक माना गया है। मंत्रसिद्धिमें श्रेष्ठ तो अपनी श्रद्धा-समर्पण और विश्वास ही है उससे ही कार्यसिद्धि होती है। जिसको भी यन्त्र बनाकर रखनेकी इच्छा हो वो शुभदिन-समयपर चांदी-तांबा या भोजपत्र पर दाडमकी कलमसे अष्ट गंधकी स्याही द्वारा उसका विधि-विधान जानकर बना सकता है, बादमें पवित्र स्थानमें रखकर नित्य दर्शन-अर्चनपूजन विधि करना चाहिये।
तस्वीरे कहां कहां कैसी हैं...?
माँ सरस्वतीजीकी प्राचीन-अर्वाचीन भिन्न भिन्न प्रकारकी अनेकशः तस्वीरे करीबन दोसौ पचाससे (२५०) से अधिक रखी गई है, हमारा जितना भी संकलन है वह सभी श्रद्धालु लोगोकी साहसो से मिला है अत: उन्हे एक संग्रहके रूप में जन हितार्थ के लिये पेश किया है, उसमें तामिलनाडु-पंजाब-सिरोही-पाला बंगाल-बीकानेर-ग्वालियर-नागपुर आदि दक्षिण भारतकी बहुत कुछ और पाटण-पिंडवाडा माउन्ट आबु-तारंगा रांतेज-जूनागढबरोडा-सूरत-पालिताणा आदि गुजरात-राजस्थान और प्रसिद्ध
चित्रकारोकी मनोहर कलात्मक कृतियाँ रखी हैं। इसमें बंगाल लेंग्वेजकी बंगला भाषा 'सरस्वती' पुस्तक में से अनेक ब्लेक अन्ड व्हाइट तस्वीरे रखी है। इन तस्वीरों के मुद्रणमें भी सबका हार्दिक सहयोग भी रहा है।
साहित्य स्वीकार इस ग्रन्थमें साहित्यकी उपलब्धि के लिये जेमलमेरपाटण-डभोई-बड़ोदा-अहमदाबाद-कोबा-सूरतके प्राचीन ज्ञान भंडारोंका उपयोग किया है। और जैन चित्र कल्पद्रम-काव्यसंग्रह भाग-२, भैरवपद्मावती कल्प, स्तोत्रसंग्रह, सरस्वती वंदना, सजन सन्मित्र लिङ्गादिपुराणे साधनमाला, चण्डीकल्पतरु आदि ग्रन्थोका भी सहयोग लिया है। तथा प.पू.आ.श्री विजय प्रद्युम्नसूरीश्वरजी म.सा. द्वारा ग्रंथका उद्देश एवं सारभूत बातोका मननीय लेख लिखकर दिया है इसलिये मैं उसका ऋणी हैं। मैने तो केवल अपनी अल्प मति अनुसार संपादन-संशोधन किया है।
मेरे अंतर की अपेक्षाएँ यह संशोधन का बृहत् कार्य करना मेरे भाग्यमें कहां....? फिर भी माँ शारदादेवी की कृपासे मेरे अनंत उपकारी सदैव कृपालु पूज्यपाद गुरुदेवश्री विजय चन्द्रोदयसूरीश्वरजी म.सा. की ही परमकृपासे यह ग्रन्थरत्न प्रकाशित हुआ है। इस प्रकाशन में मेरी अल्पज्ञता एवं अनभिज्ञतासे कुछ न कुछ गलती क्षति-होगी फिर भी माँ का उपासकगण और विद्वद् समाज पाठकगणसे एक अपेक्षा रखता हूं कि मेरी क्षति-गलती का हार्दिक निर्देश करके अवश्य याद दिलावें अवश्य शद्धि करूंगा और सहृदयतासे आपका हार्दिक आभार मानेगा।
ज्ञान-विद्या के इस पवित्र ग्रन्थ की आशातना उपेक्षा कभी नहीं करनी चाहिये फिर भी करेगा तो मेरी जिम्मेदारी नहीं है, ज्ञान पिपासु लोग ग्रन्थका शांतिसे अध्ययन करके किंचित् मौलिक उपयोग करे जिससे अपनी देह स्थित सुषुप्त अनंत शक्ति जागृत होकर माँ की कृपाका भाजन बने। अज्ञानरूप तीव्र तिमिर हटाके आत्मिक सुखानुभूतिमें रत हो करके स्व-पर सर्वके आत्मकल्याणकी भव्य भावनाएँ मूर्तिमंत करें और शाश्वत स्वरूपको प्राप्त करे यही अंतरकी तीवेच्छा सह मंगल भावना है।
पूज्यपाद गुरुदेव श्रीमद् विजय चंद्रादयसूरीश्वरजी म.सा.
का चरणकिंकर मनि कुलचन्द्र वि.
वि.सं. २०५५फा.सु.३ सीमंधर जिन दीक्षा कल्याणक दिन अहमदाबाद
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