Book Title: Sachitra Saraswati Prasad
Author(s): Kulchandravijay
Publisher: Suparshwanath Upashraya Jain Sangh Walkeshwar Road Mumbai
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७) दोनों हाथ हृदय पर रखकर बोलना।
ॐ आँ हृदयाय नमः । ८) दोनों हाथ मस्तक पर रखकर बोलना।
ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा। ९) दोनों हाथ शिखा पर रखकर बोलना।
ॐ ऐं शिखायै वषट्। १०) दोनो हाथ नेत्र पर रखकर बोलना।
ॐधी नेत्रत्रयाय वौषट् । ११) दोनों हाथ बाहु पर रखकर बोलना।
ॐ क्लीं कवचाय हुम् । १२) दायें हाथ की प्रथम दो अंगुली आगे करना।
ॐ सौं अस्त्राय फट् । अब ध्यान धरने के लिये श्लाकार्थ
ॐ आद्य (प्रथम), जगत में विस्तृत, ब्रह्मके विचारो के सार में उत्तम, शुक्लस्वरूपी, वीणा और पुस्तक को धारण करनेवाली, अभय देनेवाली, जडत्व रूपी अंधकार को दूर करनेवाली, करकमलों में स्फटिक की माला को धारण करनेवाली, पद्मासन में अच्छी तरह से स्थिर आसनवाली, बुद्धि को देनेवाली, भगवती परमेश्वरी शारदा देवी को मैं वंदन करता हूँ।
ह्रीं ह्रीं ह्रीं (मंत्राक्षरो) से हृदय (आत्मा) में बीज स्वरूपी ! चंद्र की कांति जैसे मुकुट वाली, इस कल्पयुग में विशेषरूप से स्पष्ट शोभावाली ! उत्तमा भव्यजीवों को अनुकूल ! कुमति रूपी वन में आग लगानेवाली ! विश्व वंदनीय, चरणरूपी कमलवाली, पद्म स्वरूपी! कमल पर बिराजने वाली, अत्यंत प्रसारित ज्ञान के शिखर स्वरूपी, इंद्र-शंकर से पूजित (नमन की गयी), संसार की सारभूत, देवी आप नमस्कार करनेवाले मनुष्य के मन का आनंद प्रमोद प्राप्त करानेवाली हैं।
२. एँ एँ एँ इस अक्षरों का जाप करने से संतोष पाने वाली, हिम की कांति जैसे मुकुटवाली, हाथोंमें वीणावाली, हे माता, हे माता, तुझको नमस्कार । मेरी जडता का तू दहन कर, दहन कर ! कल्याणकारी बुद्धि दे। हे विद्यावाली, वेदांतो में प्रशंसनीय, श्रुतियों से अच्छी तरह से पठन किये गये मोक्ष के मार्गवाली, मोक्ष को देनेवाली, मार्गातीत स्वरूपवाली, हे शुभ उज्ज्वल वर्णवाली, हे शारदा माँ, मुझे तूं वरदान देनेवाली हो.. । ___धीं धी धीं धारणा इस नामवाली धृति-मति-नुति (नमस्कार) इन नामों से कीर्तन करने योग्य, नित्या और अनित्या (स्वरूपा), निमित्त स्वरूपा, मुनियों के समूहों से नमस्कृत, नूतन स्वरूपा और प्राचीन स्वरूपा, पुण्यवाली और पवित्र प्रवाहवाली, हरि हर से नमन की जानेवाली, बावन वर्गों में तत्त्वरूपी, सुंदर वर्णवाली,
अर्ध मात्रा के तत्त्ववाली, बुद्धिवाली, बुद्धि देनेवाली, माधव (कृष्ण) को प्रीति (प्रेम) का नाद करानेवाली
क्लीं क्लीं क्लीं इन मंत्रों से सुंदर स्वरूपवाली, हाथ में पुस्तक धारण करनेवाली, संतोष करानेवाले चित्तवाली, हँसते मुखवाली, सुंदर भाग्यवाली, जूंभिणी और स्तंभनी विद्यावाली, तू दुरित पाप का दहन कर, दहन कर, मोहरूपा, मुग्ध (अज्ञानी) को जगानेवाली, मेरे कुबुद्धि रूपी अंधकार का नाश कर, नाश कर। ५.
सौं सौं सौं इन मंत्राक्षरो रूपी शक्ति के बीजवाली, ब्रह्मा के मुख कमल रूप बनी हुई, रूप-अरूपके प्रकाशवाली, सकल गुण स्वरूपा, निर्गुणी, विकार रहिता, तूं स्थूल रूपा नही है, सूक्ष्म (अदृश्य) रूपा नहीं है फिर भी जिसका वैभव जाना नही जा सकता है ऐसी जाप करने योग्य, विशेषत: ज्ञान के तत्त्ववाली, विश्व स्वरूपा, विश्व व्यापिनी, देवोके समुहोसें नमन की जानेवाली, शांत स्वरूपी और नित्य शुद्ध स्वरूपा तुम हो तुम हो।
हे देवी ! मैं तुम्हें वंदन करता हूँ और स्तुति करता हैं, सच में मेरी जिह्वा का आप कभी भी त्याग नहीं करना। मेरी बुद्धि विकृत न (विरुद्ध) न हो, मेरा मन पाप को प्राप्त न करे, मुझको कभी भी किसी भी विषय में दुःख न हो । पुस्तक में (ग्रंथ में) मन आकुल व्याकुल न हो । शास्त्रमें, वादमें और कवित्व में मेरी बुद्धि का विस्तार हो । पर कभी भी कुंठित न हो न हो...।
दायें हाथ में माला और बायें हाथ में दिव्य उत्तम सुवर्णमय पुस्तक को धारण करती हुई, ज्ञानसे जिसका स्वरूप ज्ञात हो सके ऐसी, पवित्र कर कमलोंसे शास्त्र के विज्ञानवाले शब्दोंसे अपनी वीणा को बजाती हुई, दिव्य तेज रूपवाली, अति उत्तम कमलों को ग्रहण करती हुई, अत्यंत प्रसन्न ऐसी, क्रीडा करती भारती श्वेत उज्ज्वल हंस पर आरुढ हुई आकाश मार्ग मे विहरती हुई फिरती है।
भक्ति से नम्र (सरल) बना हुआ जो मनुष्य (भक्त) प्रतिदिन प्रात: कालमें इस रीति से मुख्य श्लोक से स्तुति करता है वह वाणी से बृहस्पति को भी ज्ञात न हो ऐसा वैभवशाली, वाणीमें कुशल, धुले कीचड (पाप-दोष) वाला होता है । वह देवी सदा के लिये अर्थ (शब्द-अर्थ) लाभ की इच्छावाले उस मनुष्य की पुत्र की तरह रक्षा करे, उसका लोकमें सौभाग्य और कविता का विस्तार होता है, विघ्न अंत को प्राप्त करते हैं। __ वाग्देवी के प्रभाव कृपा से उसकी विद्या और शीघ्रता से शास्त्र का ज्ञान निर्विघ्नतासे सदा के लिये प्रगट होता है। तीन लोक में कीर्ति फैलती है। साक्षात् शारदा देवी उसके मुख में निवास करती है, दीर्घ आयुष्यवाला, लोक में पूज्य, सकल गुणों का भंडार और
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