Book Title: Sachitra Saraswati Prasad
Author(s): Kulchandravijay
Publisher: Suparshwanath Upashraya Jain Sangh Walkeshwar Road Mumbai
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द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्ध्यं य: पठेन्नरः । सर्वसिद्धिं प्रदेशस्तु प्रसन्ना परमेश्वरी जिह्वाग्रे वसति नित्यं ब्रह्मरुपा सरस्वती। सरस्वति ! महाभागे ! वरदे कामरूपिणी
इति सम्पूर्णम्
॥६॥
SE ભાષાંતર
तुम्हें नमस्कार; हे शुक्लस्वरूपा; तुम्हें नमस्कार; हे त्रिपुरसुन्दरी! तुम्हें नमस्कार।
हे बुद्धिदात्री ! तुम्हें नमस्कार; हे ज्ञानरूपा ! तुम्हें नमस्कार; हे देवो द्वारा पूजित; तुम्हें नमस्कार; हे भुवनेश्वरी ! तुम्हे नमस्कार।९.
हे कृपा करनेवाली ! तुम्हें नमस्कार; हे कीर्तिदात्री ! तुम्हें नमस्कार; हे सुखदायिनी ! तुम्हें नमस्कार; हे सौभाग्यवर्द्धिनी ! तुम्हें नमस्कार।
१०. हे विश्वेश्वरी ! तुम्हें नमस्कार; हे त्रिलोकधारिणी; तुम्हें नमस्कार; हे जगत के द्वारा पूज्य! तुम्हें नमस्कार; हे महातेजस्विनी! विद्या प्रदान कीजिये।
११. हे श्रीदेवी ! तुम्हें नमस्कार ! हे जगदम्बा; तुम्हें नमस्कार; हे महादेवी ! तुम्हें नमस्कार; हे पुस्तकधारिणी ! तुम्हें नमस्कार ।१२.
हे काम (इच्छितार्थ) प्रदान करनेवाली ! तुम्हें नमस्कार; हे कल्याण और मांगल्य देनेवाली ! हे सृष्टि की रचना करनेवाली! तुम्हें नमस्कार; हे सृष्टि धारिणी! तुम्हें नमस्कार। १३.
हे कविशक्तिरूपा! तुम्हें नमस्कार; हे कलियुगविनाशिनी ! हे कवित्वशक्तिदात्री ! तुम्हें नमस्कार हे मतवाले हाथी की तरह गमन करनेवाली ! तुम्हें नमस्कार ।
१४. हे जगत की हितकारिणी! तुम्हें नमस्कार; हे संहार करनेवाली! हे विद्यास्वरूपा! तुम्हें नमस्कार; हे दयावती ! विद्या प्रदान कीजिये।
१५.
વીણા - પુસ્તકને ધારણ કરનારી, હંસવાહનથી યુકતા (જોડાયેલી)થયેલી, મહા ઈશ્વરી એવી ભારતી માતાને જોઈને હું પ્રણામ કરું છું.
તેનું પહેલું નામ ભારતી, બીજું સરસ્વતી, ત્રીજું શારદાદેવી અને ચોથું હંસવાહિની છે.
પાંચમું વિશ્વવિખ્યાતા, છડું વાગીશ્વરી, સાતમું કોમારી તથા આઠમું બ્રહ્મચારિણી નામ કહેવાયેલું છે.
નવમું બદ્ધિને આપનારી, દશમું ઉત્તમ વરદાન આપનારી, અગ્યારમું ચંદ્રઘંટા અને બારમું ભુવનેશ્વરી(છે.)
આ બારનામોને જે મનુષ્ય ત્રણેય કાલ ગણે છે. તેને પ્રસન્ન એવી પરમેશ્વરી સર્વસિદ્ધિને આપે.
હે સરસ્વતી! હે મહાભાગ્યશાળી ! હે વરદાન આપનારી ! હે કામરૂપિણી ! બ્રહ્મસ્વરૂપા સરસ્વતી જીભના અગ્રભાગ (ટરવાં) ઉપર હંમેશા વસો.
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सम्पूर्णम्।
-:संपूण:
६९ । श्रीसरस्वतीद्वादशं नामस्तोत्रम्।
अनुष्टुप.
६९
अनुवाद
॥१॥
॥२॥
मातरं भारती दृष्टवा वीणा-पुस्तकधारिणी। हंसवाहन संयुक्तां प्रणमामि महेश्वरीम् प्रथम भारती नाम द्वितीयं च सरस्वती। तृतीयं शारदा देवी चतुर्थं हंसवाहिनी पञ्चमं विश्वविख्याता षष्ठं वागीश्वरी तथा। कौमारी सप्तमं प्रोक्ता अष्टमं ब्रह्मचारिणी नवमं बुद्धिदात्री च दशमं वरदायिनी। एकादशं चन्द्रधण्टा द्वादशं भुवनेश्वरी
वीणा-पुस्तक को धारण करनेवाली, हंस वाहन पर सवार (जोडित) हुई, महा-ईश्वरी ऐसी भारती माता को देख मैं प्रणाम करता हुँ।
उसका पहला नाम भारती, दुसरा सरस्वती, तीसरा शारदादेवी और चौथा हंसवाहिनी है।
पाचवाँ विश्व विख्याता, छठ्ठा वागीश्वरी, सातवाँ कौमारी तथा आठवाँ ब्रह्मचारिणी नाम कहे गए है।
॥३॥
॥४॥
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