Book Title: Sachitra Saraswati Prasad
Author(s): Kulchandravijay
Publisher: Suparshwanath Upashraya Jain Sangh Walkeshwar Road Mumbai
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४७ अनुवाद
पंचविनायक (मोद-प्रमोद-दुर्मुख-सुमुख गणनायक) का दर्शन, हर प्रकार से सुख देनेवाला, अनंत धन देनेवाला, शत्रुओं के समूह में जय करनेवाला, मित्र का समागम करानेवाला, और वेदादि शास्त्रो में विवेक का महाउदय कराने वाला होता है। १.
निर्मल शरदपूर्णिमा के चांद जैसे मुखवाली हरण-कमल और खंजन पक्षी जैसे लोचनवाली, नवपल्लवित (कोमल) वृक्ष की कुंपळ को धारण करनेवाली, जगत में भारती देवी हमारे पाप को
धन का दान देने में अमृत की लता के समान, ऐसी जगत में भारती देवी हमारे पाप को दूर करे।
१०. देवो, मनुष्यो और राक्षसों को दान देनेवाली और एवं परमात्मा के प्रति अनुराग देनेवाली, पंडितो, अपंडितो को संपूर्ण बोधपूर्वक (और) सम्मान देनेवाली, प्रसिद्ध कवियों के समूह का कवि कर्म, के लिए कवि (सारस्वत) मंत्र देनेवाली, कामधेनु गाय की तरह और प्रकाश के जैसे शक्ति संपन्न (सरस्वती) अधिकारिणी है।११.
जो नित्यदिन इस स्तुति को पढ़ता है (वो) सुख की संपदा को ग्रहण करनेवाला जय प्राप्त करता है। सदा उसे देवी उत्तम वरदान देनेवाली होती है और उभय लोक का सुख प्राप्त करता है। १२.
१४२७ चोदह सो सत्ताईश) ती साल श्रावण महिने में एकम को रविवार के दिन, स्तुति में मनवाला द्विजलंब के पुत्र हरि ने सरस्वती विषयक उत्तमब्राह्मणोके मुख में रहनेवाला स्तवन बनाया
दूर करे।
विद्याको धारण करनेवाला, अत्यंत कोमल-भय-दोष एवं दरिद्रता का विनाश करनेवाला यह स्तवन है हे भगवती ! (तेरे द्वारा) मेरे लिये कृपा हो रही है। सदा हृदयमें विष्णु (बसते) है। १४.
मुखरूपी कमलमें सरस्वती खेल रही है। कमलतंतुकी तरह विस्तरे हुए एवं कोमल पत्तियो जैसे हाथमे लक्ष्मी खेल रही है शरीर के अंतकाल में सदा हृदयमें लक्ष्मीद्वारा अलंकृत हुए विष्णु खेल रहे
। सम्पूर्णम्।
कानो में शोभा देनारे सुंदर मणियों के कुंडलवाली, भँवरे जैसे स्निग्ध और काजल समान काले केशवाली, सुवर्ण और रत्न के मनोहर करधनीवाली, जगत में भारती देवी हमारे पाप को दूर करे.
३. चंद्र-राजहंस जल जैसा स्वच्छ ज्ञान के उछलते जलवाली, पतली लता, फुलो एवं कमल जैसे कोमल, दांत दाडम की कली समान सुशोभित, जगत में भारती देवी हमारे पाप को दूर करे।४.
उन्नत स्तनतट से सुवर्ण कलश और हाथी के कुंभ स्थल को जितने वाली, चरण की कांति से लाल नवपल्लवित फुल को हराने वाली, जगतमें भारती देवी हमारे दुरितों को दूर करे। ५. ___ अति स्वच्छ लाल (परवाला) जैसी अंगूलीयों की मुद्रावाली, कमल की नालसे शोभा पा रही भुजावाली, कमल की कोमलता में उत्पन्न होनेवाली और पवित्र, जगत में भारती देवी हमारे पाप को दूर करे।
प्रगट होकर प्रशंसा योग्य हाथ में जपमाला वाली, कमलपुस्तक और वीणा की विद्या को धारण करनेवाली, श्वेत (देदीप्यमान) हंस का सुंदर रीत से आश्रय किये हुए वाहनवाली, जगत में भारती देवी हमारे पाप को दूर करे।
वो ही पति (स्वामी) स्वरूप है जो समस्त विश्व की अधिकारिणी (और) प्रकाश के स्थान नक्षत्रादि (ब्रह्मांड) को धारण करनेवाली, सकल धर्म रूपी अमृतरस के सागरवाली और मंत्र से उत्पन्न हुए मनुष्य संबंधी ध्वनि के लिए महान घंट (आवाज) वाली, जगत में भारती देवी हमारे पापको दूर करे।
कमल के कंद (बीज) जैसे श्वेत (शुद्ध) आचरण को पसंद करनेवाली मुकुट-कंकण और हार से सदा ही अलंकृत, हर कवियों द्वारा विशिष्ट मानस (हृदय) के सम्मान से उत्कृष्ट रीत से प्रशंसित हुई जगत में भारती देवी हमारे पाप को दूर करे।
कमल के (गुणधर्मो को) तिरस्कृत करनेका मनवाली, विशेष में स्तुति करने स्थानभूत, सकल कल्याणरूपी वृक्ष की मंजरी, बहुत
४८ महाकविलघुपण्डितविरचितं
त्रिपुराभारतीस्तोत्रम् डभोई प्रत नं. ५५६/५१९ पाटण ह. प. नं. ९७५६, ९३३७, ९३३८
शार्दूल - स्नातस्या.
॥२
॥
ऐन्द्रस्येव शरासनस्य दधती मध्येललाटं प्रभां, शौ क्ली कान्तिमनुष्ण गौरिव शिरस्यातन्वती सर्वतः। एषाऽसौ त्रिपुरा हृदि द्युतिरिवोष्णांशोः सदाहः स्थिता, छिन्द्याद्रुः सहसा पदैस्त्रिभिरघं ज्योतिर्मयी वाङ्मयी या मात्रा वपुषी लतातनुलसत्तन्तूस्थिति स्पर्द्धिनी, वाग्बीजे प्रथमे स्थिता तव सदा तां मन्महे ते वयम् । शक्तिं कुण्डलिनीति विश्वजननव्यापार बद्धोद्यमां, ज्ञात्वेत्थं न पुनः स्पृशन्ति जननी गर्भेऽर्भकत्वं नरा:
॥२॥
टी. १. गोरिव । २. छिन्द्यान्नः । ३. पुसी।
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