Book Title: Sachitra Saraswati Prasad
Author(s): Kulchandravijay
Publisher: Suparshwanath Upashraya Jain Sangh Walkeshwar Road Mumbai

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Page 220
________________ કાળની દેવી મારી જનની શારદામાતાને હું નિરંતર ભજું છું. ૩ સુંદર સેંથી અને ચોટલાવાળી, નેત્રોથી હરણોના નયનને જીતનારી, પોપટની વાણીથી પ્રસન્નથતી, ઈન્દ્રથી નમસ્કાર કરાતી, અમૃતના ભંડારરૂપ મુખવાળી, હર્ષથી ધ્યાન કરવા લાયક પ્રયાગ તીર્થ (ત્રિવેણી) સ્વરુપ, મારી જનની શારદા માતાને હું નિરંતર ભજું છું. અત્યંત શાંત, સુંદર દેહવાળી, કેશ (વાળ) સુધી પહોંચતી દષ્ટિવાળી (વિશાળ નયનોવાળી) દેદીપ્યમાન લતા સમાન અંગોવાળી, અંત રહિતચિંતવી ન શકાય એવી, તાપસોની સાથે નિવાસ કરીને રહેલી, એવી દેવીનું સ્મરણ કરવું. મારી જનની શારદામાતાને હું નિરંતર ભજું છું. हरा, घोड, सिंह, 135,हंस-महपाणो हाथी, सने मोटा બળદ ઉપર આરૂઢ થયેલી, મોટી નોમતિથિ (નવરાત્રી)માં હંમેશા વેદજ્ઞાનરૂપી મારી જનની શારદામાતાને હું નિરંતર ભજું છું. ૬ ચમકતી કાંતિથી અગ્નિ સમાન દેદીપ્યમાન, જગતને મોહિત કરનાર દેહવાળી, મનરૂપી કમળમાં સારી રીતે ભમેલી ભમરી समान, हेवीने हुनjg. સ્વાભાવિક સ્તોત્ર(સ્તુતિ) સંગીત અને નૃત્યથી શોભાયુકત અંગોવાળી મારી જનની શારદામાતાને હું નિરતંર ભજું છું. ૭ બ્રહ્મા-વિષ્ણુ-શંકરથી પૂજાતી, સુંદર મંદહાસ્યથી અંકિત થયેલા મુખવાળી, ચમકતા ચંચળ સુંદર આભૂષણથી શોભતા. કાનવાળી, મારી જનની શારદામાતાને હું નિરતંર ભજું છું. ૮ गालवाली, हाथ मे अक्षमाला धारण करनेवाली, प्रकाशवती, प्राचीन काल की देवी, मेरी जननी, शारदा माता को मैं निरन्तर भजता हूँ। सुन्दर मांग और वेणीवाली, नेत्रो से हिरनों (के नेत्रो) को जीतनेवाली, शुक की वाणी से प्रसन्न होती हुई, इन्द्र के द्वारा नमस्कार की जानेवाली, अमृतके भंडार स्वरूप मुखवाली, हर्ष से ध्यान करने योग्य, प्रयागतीर्थ (त्रिवेणी) स्वरूप मेरी जननी शारदा माता को मैं निरन्तर भजता हूँ। अत्यन्त शान्त, सुन्दर शरीरवाली, केशो तक पहँचती हई दृष्टिवाली (विशाल लोचनावाली) देदीप्यमान लता के समान अंगोवाली, अन्त-रहित, अचिन्तनीय, तापसोके साथ निवास कर के रही हुई, देवी का स्मरण करना चाहिए। मेरी जननी शारदामाता को मैं निरन्तर भजता हूँ। हिरन, घोडा, सिंह, गरुड, हंस, मतवाले (भत्त) हाथी और बड़े बैल पर आरूढ हुई बडी नवमी तिथि (नवरात्रि)में सदा वेदज्ञानरूपी मेरी जननी शारदा माता को मैं निरन्तर भजता हूँ। उज्ज्वल कान्ति से अग्नि के समान देदीप्यमान, जगत को मोहित करनेवाले देहवाली, मनरूपी कमल मे अच्छी तरह भैंडराती हुई भ्रमरी के समान, देवी को मैं भजता हूँ।.... स्वाभाविक स्तोत्र (स्तुति), संगीत और नृत्य से सुशोभित अंगोवाली, मेरी जननी शारदा माता को मैं निरन्तर भजता हूँ। ७ ___ ब्रह्मा-विष्णु-शंकर द्वारा पूजीजानेवाली, सुन्दर मन्द हास्य (मुसकान) से अंकित मुखवाली, चमकते हुए चंचल सुन्दर आभूषण से भूषित कानवाली, मेरी जननी शारदा माता को मैं निरन्तर भजता सम्पू. हूँ । सम्पूर्ण। ६४ अनुवाद ६५ श्रीशारदाम्बास्तोत्रम् । (शारदापञ्चरत्नम्) सुन्दर कुंभ के जैसे स्तनवाली, अमृत से भरे घडो वाली, आनन्द के आधाररूप उत्तम पुण्यशालियों के आलंबनस्वरूप, चन्द्रमंडल के समान मुखवाली, (अरुण) बिंबफल के समान सुन्दर होठवाली, मेरी जननी शारदामाता को मैं निरन्तर भजता हूँ। (करुणा) दृष्टि में दयाकीआर्द्रतावाली, हाथ मे ज्ञानमुद्रावाली, ललित (साहित्य-संगीत-नृत्य) कलाओ से सदा जागृत आभूषणो से सुन्दर स्वरूपवाली, विद्या की देवी, ज्ञानरूपा, बुद्धिका उच्च विकास करनेवाली मेरी जननी, शारदा माता को मैं निरन्तर भजता सारसभवमुखसारसमधुकरि ! हारसमुदयसुशोभिगले, शारदशशिमुखि ! नीरदनिकरनिकारदशिरसिजभाररुचे ! कैरवसुहृदुडुहारवलयरुचिगौरवहदमलदिव्यतनो! भारति! जननि! सुधीरिति सुमधुरगीरिति विशदय संसदि माम्।।१।। कञ्जजमुखमणिपञ्जरशुकि-सकृदञ्जलिमपि तव यो रचयेत्वं कलयसि ननु तं कविवरमिह पङ्कजमधुमदहारिगिरम्। संततमथ तव चिन्तनमपि यदि किं तप इत इति वेत्ति बुधो, भारति! जननि ! सुधीरिति सुमधुरगीरिति विशदय संसदि माम् ।।२।। कपाल मे सुन्दर तिलक की हुई, मनोहर गान मे लीन, अपने भक्तों की एक मात्र रक्षा करनेवाली, यशरूपी शोभायुक्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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