Book Title: Sachitra Saraswati Prasad
Author(s): Kulchandravijay
Publisher: Suparshwanath Upashraya Jain Sangh Walkeshwar Road Mumbai
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ભવ્યજીવોને સુખ આપનારી, ઘણાપ્ર કારે વરદાન (આશીર્વાદ) આપનારી, આનંદ ઋદ્ધિ અને કીર્જિને આપનારી, શોભતા પરાક્રમ અને મોટા અભ્યદયના સમૂહને કરનારી, અતિઆનંદને આપનારી, મણિ(રત્ન)ના ઉદ્યોત (પ્રકાશ) સરખાં સુંદર દાનને આપનારી, ઉત્તમ દયા - સૌભાગ્ય અને સારા નસીબને દેનારી એવી તે સિદ્ધિને આપનારી વાણીની દેવી મારી જીભના ટેરવા ઉપર નિરંતર વસો.
શ્રી કુ મારપાલ મહારાજાના સુગુરુ શ્રી હે મસૂરિપ્રભુ (हमयंद्रायार्थ)ना (सरस्पती) आम्नाय (परंपरा)मांथी मंत्रानी સુંદર વિધિને જાણીને તે મંત્રાક્ષરોથી સ્તુતિ કરાયેલી છે. પ્રખ્યાત નામવાળા સુમુકિતવિમલ નામના સાધુને પ્રકર્ષ (અત્યંત) બુદ્ધિને આપનારી તે સિદ્ધિને આપનારી વાણીની દેવી મારી જીભના ટેરવા ઉપર નિરંતર વસો.
સંવત ૧૯૪૧ ની સાલમાં ચેત્રવદ એકાદશી (અગ્યારશ) શનિવારે આ વાણીની દેવી (સરસ્વતી)નું જે સુંદર દર્શન કર્યું. (તે) સુમકિતવિમલ (મનિ) વડે અજારિગામમાં આ સ્તોત્ર સત્યમંત્રો વિગેરેથી યુકત સંપૂર્ણ કરાયું. (તે) હંમેશા સૂર્ય અને ચંદ્ર આકાશમાં રહે ત્યાં સુધી વિજયને પામે. જાપ મંત્ર - ૐ હ્રીં શ્રીં કર્લી એં વદ વદ વાગ્યાદિની સરસ્વત્યે ઊઁ નમઃ |
संपू.
प्रदान करनेवाली ऐसी सिद्धिदात्री वह वाणी-देवी मेरी जिहवा पर सदैव निवास करे।
ऐं क्ली . - मंत्राक्षर-स्वरूपा; उत्तम योगिजनों के द्वारा ही जिसकी महिमा जानी जा सकती है ऐसी; भवसमुद्र में नौका समान; वीणा एवं बंसी के मधुर ध्वनिवाली; अतिलावण्यवती; सौभाग्य की भाग्योदयरूप; संसारसमुद्र को पार करानेवाली; उत्तम आचरण युक्ता; लक्ष्मी प्रदान करनेवाली; (भक्तों को) ध्यान रखनेवाली ऐसी सिद्धिदात्री वह वाणी-देवी मेरी जिह्वा पर सदैव निवास करे।४.
श्री श्री धू - मंत्रयुक्ता; श्वेतवस्त्रधारिणी; सदैव सजनों के लिए साध्यरूप; देवताओंकीदेवता; भयानकविपत्तियोंका छेदनकरनेवाली; संपत्तिकी स्थानभूत; दिव्यअलंकारोंसे विभूषित; हाथपैर के उज्ज्वलतलवाली; कल्याण की माला (परंपरा) की निवासरूप ऐसी सिद्धिदात्री वह वाणी-देवी मेरी जिह्वा पर सदैव निवास करे।
जो ब्राह्मी श्रुतदेवता शारदा अपने हाथमें कल्याणदायक ग्रंथ को धारण करती है; सम्यग्ज्ञानभंडारदात्री जो मानवों को सुख प्रदान करती है; पंडितो के वादमें, शास्त्र में एवं कवित्वविषय में मेरी बुद्धि के विकास के लिए साक्षात् शारदा, ऐसी सिद्धिदात्री वह वाणीदेवी मेरी जिह्वा पर सदैव निवास करे।
भव्यजीवों को सुख प्रदान करनेवाली; अनेक प्रकारसे वरदान देनेवाली; आनंद, ऋद्धि (समृद्धि) और कीर्ति प्रदान करनेवाली; शोभित पराक्रम और महान अभ्युदय-समूह को करनेवाली; अत्यधिक आनंददात्री; मणि के प्रकाश समान सुंदर दान देनेवाली; उत्तम दया एवं सौभाग्य के सद्भाग्य को प्रदान करनेवाली ऐसी सिद्धिदात्री वह वाणी-देवी मेरी जिह्वा पर सदैव निवास करे।७.
श्रीकुमारपाल महाराजा के सद्गुरु श्री हे मसूरिप्रभु (हेमचन्द्राचार्य) के (सारस्वत) आम्नायमेंसे मंत्र की उत्तम विधि जानकर तदुक्त मंत्राक्षरों से जिसकी स्तुति की गई है। प्रख्यात नामवाली; सुमुक्तिविमल नामक साधुको उत्कृष्ट बुद्धि प्रदान करनेवाली ऐसी सिद्धिदात्री वह वाणी-देवी मेरी जिह्वा पर सदैव निवास करे। ___ संवत् १९४१ वर्ष में चैत्र कृष्ण एकादशी एवं शनिवार को इस वाणी-देवी का दर्शन करनेवाले सुमुक्तिविमल (मुनि) के द्वारा अजारिगाँव में सत्यमंत्रयुक्त यह स्तोत्र विरचित किया गया। वह (स्तोत्र) जब तक गगन में सूर्य-चन्द्र रहे तब तक (सदैव) विजय प्राप्त करे। जपमंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं वद वद वाग्वादिनी सरस्वत्यै ह्रीं नमः।
१७ अनुवाद
ॐ ह्रीं श्री - इस प्रथम (मंत्ररूप) प्रसिद्ध महिमावाली; विद्वानों के लिए हितकारिणी; ऐं क्ली हम्ली - मंत्राक्षरों से युक्त; सुरेन्द्रों के द्वारा पूजित; विद्याप्रदानरूपी कार्य से युक्त; पवित्र आचार-विचार की सुंदर व्यवस्थावाली; चतुरजनोंके समूहसे पूजित ऐसी सिद्धिदात्री वह वाणी-देवी मेरी जिह्वा पर सदैव निवास करे।
ॐ ह्रीं श्रीं - (मंत्राक्षरों से) युक्त; दोनों वषट्-कारों से अन्वित; 'स्वाहा' एवं 'नम:' से युक्त; अन्तभागमें ह्रीं क्लीं ब्ली - बीजमंत्रोंवाली; गुणों से अतिश्रेष्ठस्वरूपा; देदीप्यमान देह की उत्तम शोभावाली; ह्रीं खीं ह्रीं - मंत्रों के उत्तमजपसे सुमतिप्रदान करनेवाली; स्तों, ऐं - उत्तम बीजमंत्रों से युक्त; ऐसी सिद्धिदात्री वह वाणी-देवी मेरी जिह्वा पर सदैव निवास करे।
आ र्सी y - मंत्रोंसे नित्य सुशोभित स्वरूपवाली; ऐसे अक्षरों के समूहों से सदैव ध्येयस्वरूपा; ह्रीं ह्रीं हूँ - बीजाक्षरों से मनोहर; कलाओंसे अत्यन्त सुन्दर; ह्रीं ह्रीं - स्वरूपा; आनन्दरूप; चलायमान चंद्र की किरणोंसे मनोहर मुखवाली; धन के साथ अभीष्ट अर्थ को
। समाप्तम् ।
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