Book Title: Sachitra Saraswati Prasad
Author(s): Kulchandravijay
Publisher: Suparshwanath Upashraya Jain Sangh Walkeshwar Road Mumbai
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3९ अनुवाद
श्रेष्ठ-प्रिय-सफेद-राजहंस के वाहनवाली, कमल की नाल (तंतु) की (कोमल) उपमावाले वस्त्रों से शोभित, बर्फ (हिम), कुंदजाति के पुष्प और चंद्र के समान शोभावाली, स्तुति करने योग्य, सुन्दर, मनोहर, भारती देवी सदा प्रसन्न हो।
१ अपने भक्तरूपी वृक्षों को अमृत का सिंचन करने को उत्सुक, अपने शरीर की शोभा, कांति, और बुद्धि से भरी, अपनी वाणी से विश्व की मधुरता को जीतनेवाली, अमृतमयी सुन्दर भारतीदेवी, सदा प्रसन्न हो..।
अमृत भरे (कमंडल),सु (सुन्दर) पात्र को धारण करनेवाली पवित्र हाथ में पुस्तकों के पत्र को धारण करनेवाली और इसी तरह श्रेष्ठ वीणा वाजिंत्र को बजानेवाली, सरस्वती देवी ! मेरे प्रणाम करने से प्रसन्न हो..।
१२
जिनेन्द्र देवों द्वारा कहे गये शास्त्र की वाङ्मयी-स्वरूप, गणधर (भगवंत) के मुखरूपी गुफा में सुन्दर नर्तकी स्वरूप, और गुरु के मख रूपी कमल में (हंसिनी-शारदा) हर्ष पाती है, वह सरस्वती मेरे दोनों नेत्रोंको पवित्र करे।
समस्त देवों, दानवों तथा मनुष्यों से पूजी गई, तीनों जगत जन समूह के द्वारा अत्यन्त मान प्राप्त की हुई जिसने (अपने) सुसौम्य मुख सब (लोक) को जीत लिया है, ऐसी हे हंसवाहिनी ! मेरे हृदय में विराजमान हो। __हे मित्र ! यहाँ “ओम् कह कर तत्पश्चात् हरीम् (ह्रीं) और उसके बाद क्लीं बोलना । ब्लीं श्रीं, उसके बाद हसकल पद ह्रीं
और ऐं नम:" यह अन्त में रखना। इस तरह जो मनुष्य एक लाख जाप करे, और उसके बाद दस हजार 'स्वाहा' पूर्वक अग्नि में होमकरे उसे समस्त सिद्धि होता है।
अरे अरे मानव ! यदि तुम्हें श्रुतज्ञान में चतुराई पाने की इच्छा है, उसके बाद तुम्हें स्व-पर दर्शनशास्त्रों और सारे काव्य ग्रन्थों में पटुता पाने की अभिलाषा है तो चित्त की स्थिरता रखकर वाणी से हररोज उस मंत्र का सुंदर जाप करे। इससे भूमंडल पर जल्दी श्रेष्ठ, पूजनीय पंडित बनोगे।
गुणों से बलवती, सरल, कमल के आसनवाली श्वेत कुंदजाति के फूल के समान दांतोंवाली, सुख देनेवाली, विद्यावाली, मलयचन्दन के इस का लेप की हुई, सुन्दर, इस लोक में महान् सरस्वती देवी विजय पाती है।
सदा हस्तकमल पर क्रीडा करने को उत्सुक, श्रुतसागर के मध्य भाग से उत्पन्न हुए चंद्र के समान, उज्ज्वल कलाओं के महान आदान-प्रदान के आग्रहवाली उत्तम - जपमाला है। १४
सुशील विजयसूरि के बनाये हुए इस स्तोत्र को इस लोकमें जो पढता है, वह भक्ति से पूर्ण बने। उसे प्रसन्नता पूर्वक वरदान देनेवाली - वरदायिनी यह श्रुतदेवता अत्यंत शीघ्रता से सिद्धि देनेवाली हो।
राजस्थान (मरुधव) के सिरोही पुर नगर में विक्रम संवत् २०३३ आश्विन सुदी विजया दशमी तिथि को शुक्रवार के दिन मैंने यह स्तुति बनाई है।
जब तक सूर्य और चन्द्र उगते हैं, जब तक मेरुपर्वत है, जब तक नौ ग्रह-नक्षत्र-महासागर और आठ वसु' हैं तब तक यह स्तोत्र पाठ करने वालों को शुभ के लिए हो। इस तरह मैं गुणस्वरूपी और कल्याण देनेवाली (माता) वाग्देवी, वरदायिनी को प्रार्थना करता
५७ । सम्पूर्णम्।
शारद ऋतु के चंद्र की जैसी सुन्दरता (शोभा)वाली, अत: प्रफुल्लित सुन्दर केतकी पत्र के समान लोचनवाली विराजमान वही श्रुतदेवता है जो गाढशीलवाली सरस्वती आनंदित होकर प्रणाम की जाती है।
जड़ता का विनाश (करनेवाली), सुबुद्धि देनेवाली तुम वेश से सफेद ही शोभती हो, तुम्हारी कृपादृष्टि से देखाहुआ पंडित पुरुष सभाओं में औचित्यपूर्ण वाणी बोलनेवाला होता है।
पंडित लोग धनसे हीन होते हुए भी कुछ कृपा से कोमल बनी वाक्यसंपत्ति वाले मान्य हुए हैं, सब तरह से विलास (सुख) पाते हैं, और मनुष्यों के चित्त को प्रतिक्षण (हर समय) हरण (आवर्जित) करते है।
कमल पत्र के समान हाथ की अंगुलियों के बीच फिरनेवाली तुम्हारी सुन्दर स्फटिक माला शोभायमान है और समस्त शास्त्ररूपी समुद्रों की तरंगरूपी रस्सियों में चार हाथवाले (देवता) भली भाँति धारण किये हों इस तरह तुम हर्षित होती हो।
हाथी-सिंह और साँपों के गाढ वन में, भूत-पिशाच आदि से उपसर्गमय (संकटमय) बने वन में, आपके चरण कमलों में प्रणाम करने से चोर, दुर्जन या लुटरों का भय नहीं रहता।
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