Book Title: Sachitra Saraswati Prasad
Author(s): Kulchandravijay
Publisher: Suparshwanath Upashraya Jain Sangh Walkeshwar Road Mumbai
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कमल मेरे (मुझे) ज्ञान - कमलको प्रसन्न (विकसित) करे । १०
कमल-पत्र के समान सुन्दर चरणोंवाली। प्रवाल के अंकुरों के समान (किसलयके) लालरंग की सरल अंगुलियोंवाली, मणि के समान श्रेष्ठ नखोंवाली, अकठोर (मद), क्रमशः गोल एवं मृद जंघावाली तथा कदलि स्तंभ के समान उज्ज्वल, शुभ ऊरु से मनोहर उत्तम प्रभामयी, सर्वोत्तम गतिवाली, अतिशय विशाल नितंबरूपी किनारों वाली एवं पतले पेट के कारण मधुर, मधुरता की सीमारूप वचन और गोष्ठि के समूह वाली एवं देवों के समुदायों द्वारा प्रणाम की गयी! तुम्हारी जय हो ! जय हो।
११-१२ हे देवी ! अतिशय विशाल हस्तरूपी मृणाल (कमल तंतु) वाले निर्मल एवं प्रसन्नचित्तवालों के मस्तक पर रखे गये तुम्हारे कोमल कर-कमलों के युग्म को हम सचमुच वहन न करें - ऐसा नहीं है।
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जो कमलाकर (सरोवर) के कमलों से सुशोभित हुए सुन्दर हस्तकमल, वाणी और हस्तकमल से अलंकृत किये गये हाथ में कमल लिये हुए है वह श्रुतदेवी ब्रह्मा की कला के समूह रूपी कमल में से (आपको) श्रुत (ज्ञान)रूपी लक्ष्मी दे।
ब्रह्मा, विष्णु आदि निर्मल देवों एवं मानवों ने जिनके चरण कमलों में वन्दन किया है, लक्ष्मीपुत्र प्रद्युम्न (कामदेव) के क्षेत्ररूप नेत्रों के निरीक्षण से हरिण एवं कमलों को परास्त किया है, जो विष्णु द्वारा पूजित तथा श्रुत की चर्या (पूजा) वाली है, जिसके दर्शन द्वारा दुःखरूपी मल (दूर) जाता है ऐसी, तथा जिसने कमलोंके चिह्नवाले चपल कपोलों की शोभा से सरोवर के कमल को जीत लिया है वह देवी हमें सुख पूर्वक सेवा समर्पित करे। २/३
जिनेश्वर के वदन रूपी कमल के स्थान में क्रीडा करने में रसिक मानों बालहंसिनी हो, ऐसी जगत के लोगों की माता (एवं) जिसको दिव्यांगनाए नमन करती हैं ऐसी श्रुतदेवी जयवती है। ४
चन्द्र, पुष्ट एवं उत्तम इन्द्र के ऐरावण हाथी के समान निर्मल गुणों के निवासरूप, तथा एकतान में लीन, तथा पुष्ट कामदेव का (जिन्होंने) नाश किया है ऐसे मुनिजनों के अशुभ का (जिसकी सहायता से) नाश किया ऐसी तुम हो।
लय और तान के विस्तार से युक्त गान तथा गायन की सखी रूपवीणा-वादन में विनोदपानेवाले चित्तवाली, मनन करने योग्य चरित्रवाली, जिसने पापों का प्रणाश किया है ऐसी पापों से मुक्त हे माता ! तुम जयवती हो।
हे सरस्वती! तुम्हारे चरणों की सेवारूपी रेवा (सरिता) को प्राप्त कर नव-रस का लालन करने में चपल, विचक्षण (पंडित)रूपी कुंजर (गजराज), सुन्दर उक्तियों के रसों से कोलाहल करते हैं।७
तुम रस के समुदाय रूपी, एवं सुन्दर उक्तिरूपी मुक्तामणि को (उत्पन्न करानेवाली) शुक्ति (सीप) हो। तुमने मोक्ष की कला को स्वीकार किया है, एवं तुम काव्यों के समुदायरूप, सफल एवं उत्तम सारस्वतरूप सागर की वृद्धि करने में चन्द्र की कलास्वरूप हो।
विविध नूतन सुवर्णाभूषणों से भूषित भुजाओं वाली, तुम असाधारण पूर्णत: गोल तथा देदीप्यमान, मनोरंजक हार से युक्त पुष्ट स्तन रूपी कुंभयुगलवाली हो !
१४ हे चंद्र के समान मुखवाली ! (हे चन्द्रवदनी!) मोतियों जैसे दाँतोंवाली ! हे शुक के समान नासिकावाली !, विशाल भालवाली,! तेज से अलंकृत काजल के समान बालों के जूडेवाली! तथा हे मधुर श्रुति से सुविशाल ! तुम महाव्रतधारियों की रक्षा करो।
हे कवियो! उस श्रुतशक्ति को नमन करो, जिस के चरणरूपी कमलों के प्रति भक्ति, कवियों के समूह को कलंक रहित कला के मनोहर आनन्द से प्रोत्साहित करती है।
हे जलपक्षियों में श्रेष्ठ तथा प्रशंसनीय हंस पर आरुढ हुई देवी! तुम ऐसी हो जिसने प्रौढ गुणों की श्रेणि प्राप्त की है, तथा जो पराक्रमी मदनरूपी भ्रमर के बैठने योग्य चंपा की कली के समान है, एवं जिसने अपनी देह की कांतिसे दीपक कीप्रभा को ठग लिया है।१७
मणियों से अलंकृत नूपुरो की झंकार से जड़ लक्ष्मी (जड़ता) का जिसने निरसन किया है, ऐसी उत्तम तरुणी ! जिसने दान में चिंतामणि को भी परास्त किया है, ऐसी तुम उत्तम श्रुतरूपी दुग्ध(दूध) के दान के विषय में कलिकाल की कामधेनुरूप बनो!
हे देवी! सुंदर प्रमाणवाले अंगो और उपांगों वाली हे सरस्वती! मधुर शब्दों के विनोद के ज्ञाता देवों ने (जिसकी सहायता से) ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर लिया है, ऐसी हे कैरव (श्वेतकमल) के जैसी शोभावाली ! तुम मुझ पर प्रसन्न हो।
हे सुन्दर देहवाली देवी! हस्तरूपी कमल के अग्रभाग में जागृत, तुम्हारी जपमाला मेरे नासा ज्वर (बुखार शारीरिक रोग) रूपी दोष को वश में (दूर) करे। और तुम्हारी वीणा, पवित्र पुस्तक एवं
हे पार्वती के गुरु (पिता) पर्वत (हिमालय) के समान उज्ज्वल शरीरवाली ! हे चन्द्र की उज्ज्वल ज्योत्स्ना के समान अत्यन्त मनोहर वस्त्रोंवाली ! आपको भजनेवाले (भक्त) भव (समुद्र) के तट पर कवियों के पराक्रम मे श्रेष्ठ होते हैं।
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