Book Title: Sachitra Saraswati Prasad
Author(s): Kulchandravijay
Publisher: Suparshwanath Upashraya Jain Sangh Walkeshwar Road Mumbai
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30 अनुवाद
। श्री सरस्वती स्तोत्रम् । पाटण हे. ज्ञा, भंडार प्रत नं. १८९९६
ब्रह्मस्वरूपा, कश्मीरदेशमें निवास करनेवाली, चार हाथोवाली, महान सामर्थ्यवाली ऐसी भारतीदेवी को मैं नमस्कार करता हूँ।
बालक को ज्ञान देनेवाली, दुर्बुद्धि का विनाश करनेवाली, वीणा एवं पुस्तक को धारण करनेवाली ऐसी त्रिनेत्रयुक्ता देवी मेरी रक्षा करे।
__ श्वेतवर्णा, शुभ्र वस्त्रोवाली, श्वेतचन्दन के लेप से चर्चित देहवाली देवी हंस पर पद्मासनमुद्रा में बैठती है। ३.
देवी दायें हाथ में माला को एवं बायें हाथ में कमंडलु को धारण करती है; वह मुकुट में (अर्ध-)चन्द्र को संयुक्त की हुई, मोतीयो के हारोसे अलंकृत है।
विविध अलंकारों को धारण करनेवाली देवी उन भूषणो के तेज से प्रकाशित है एवं सभी आभूषणो से विभूषित वह अपने सौन्दर्य से सुशोभित है।
ॐकार आदि बीज, मायाबीज (ह्रीं) द्वितीय बीज, लक्ष्मीबीज (श्री) तृतीयबीज और वाग्वादिनी चतुर्थ है - इस प्रकार प्रत्येक बीज अच्छी तरहसे प्रसिद्ध है।
'ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं' मंत्रपूर्वक वाग्वादिनी' (पद) को जोडकर बने हुए मंत्र का जो मनुष्य एक लाख जप करता है वह बृहस्पति (देवगुरु) के समान हो जाता है।
साक्षात् सरस्वती के समान इस मंत्र का जो नित्य तीनो संध्याकाल में इस प्रकार पाठ करता है उसके कंठमें सरस्वती रहती
नमस्ते शारदादेवी काश्मीरपुरवासिनी। त्वामहं प्रार्थये मात विद्यादानं प्रदेहि मे
||१|| सरस्वती मया दृष्टा देवी कमललोचना। हंसयान समारुढा वीणापुस्तकधारिणी
॥२॥ सरस्वतीप्रसादेन काव्यं कुर्वन्ति मानवाः । तस्मान्निश्चलभावेन पूजनीया सरस्वती
||३|| प्रथमं भारती नाम द्वितीयं च सरस्वती। तृतीयं शारदा देवी चतुर्थं हंसवाहिनी पञ्चमं विदुषां माता षष्ठं वागीश्वरी तथा। कौमारी सप्तमं प्रोक्ता अष्टमं ब्रह्मचारिणी नवमं त्रिपुरा देवी दशमं ब्रह्मणी तथा। एकादशं तु ब्रह्माणी द्वादशं ब्राह्मवादिनी
॥६॥ वाणी त्रयोदशं नाम भाषा चैव चतुर्दशम् । पञ्चदशं श्रुतदेवी षोडशं गौरी निगद्यते
||७|| एतानि शुद्धनामानि प्रातरुत्थाय य: पठेत् । तस्य संतुष्यते देवी शारदा वरदायिनी
1॥८॥ या देवी श्रूयते नित्यं विबुधैः वेदपारगैः । सा मे भवतु जिह्वाग्रे ब्रह्मरूपा सरस्वती
||९|| या कुन्देन्दुतुषारहावधवला या श्वेतपद्मासना, या वीणावरदण्डमण्डितकरा या शुभ्रवस्त्रावृता। या ब्रह्माऽच्युतशंकरप्रभृतिभि: देवैः सदा वन्दिता, सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा शार्दूल०॥१०॥
॥ इति स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
(इस जप के द्वारा) ज्ञानेच्छुक मनुष्य ज्ञान को, धनेच्छुक धन को, स्त्री का इच्छुक स्त्रीको एवं मोक्षार्थी मोक्ष को प्राप्त करता है।
। समाप्तम्।
૩૧ ભાષાંતર
હે કાશ્મીર દેશની રહેવાસી શારદાદેવી આપને નમસ્કાર થાઓ - હે માતા! હું આપને પ્રાર્થના કરું છું. (કે) મને વિદ્યાદાના (तु)आप.
મારા વડે કમલ સરખા લોચન (નયન)વાળી, હંસના વાહન ઉપર આરૂઢ થયેલી, (બીરાજેલી) વીણા-પુસ્તકને ધારણ કરનારી
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