Book Title: Sachitra Saraswati Prasad
Author(s): Kulchandravijay
Publisher: Suparshwanath Upashraya Jain Sangh Walkeshwar Road Mumbai
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का वह अपूर्व वचन (वाणी) हमारी रक्षा करे।
(मेघ) गंभीर, मधुर, अत्यन्त मनोहर, दोषो से मुक्त, कल्याणकारी, कंठ-होठ, आदि वाणी के निमित्तो से रहित, वाय के अवरोध के बिना उत्पन्न, स्पष्ट, हर एक प्राणी को मनोवांछित वस्तु (बोध) कहनेवाली समस्त भाषा-स्वरूप, दूरस्थ और निकस्थ सभाओं से सुनी जा सकने वाली उपमा रहित (बेजोड) जिनेश्वर की वाणी (वचन) हमारी रक्षा करे।
।समाप्तम्।
आदिमें (आगमो में) विस्तृत हुई, मुनियों के द्वारा आराध्य ब्राह्मी (देवी) को (मैं) प्रज्ञा की अधिकता के लिए वंदन करता हूँ। ८
जगत को आनन्दितकरनेवाली, तापहरनेवाली, उत्तम शीलवाली, ज्ञानरूपी लक्ष्मीवाली, चन्द्ररेखा के समान प्रभावाली, विद्वानों को प्रिय सरस्वती को मैं नमन करता हूँ।
९ इन्द्रादि देवो द्वारा नमस्कार किये गये चरणकमलो वाली, सदा मुनीन्द्रो द्वारा जिसका ध्यान किया गया है नागेन्द्र (पाताल के देवता), आकाश के देवता एवं पृथ्वी के राजाओ द्वारा सेवित, हंस पर विराजमान, हाथ में अति विशाल कमल धारणकरनेवाली, विद्वान-समूह के लिए आनन्दरूप वीणा, पुस्तकसे शोभित, शारदा सर्वदा जन हित करनेवाली हो।
काश्मीर देश में निवास करनेवाली, शारदादेवी, तुम्हें नमस्कार हो। हे माता ! मैं तुम्हें प्रार्थना करता हूँ, और तुम मुझे विद्यादान दो।
११ हे इच्छानुसार रूप धारणकरनेवाली ! वरदान देनेवाली ! सरस्वति ! तुम्हें नमस्कार हो। मैं विद्या का आरम्भ करूँगा, मेरी सदा सिद्धि हो।
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श्रीजिनवाकूस्तुति
कर्मरूपी बंधन को काटने में तलवार के समान, संसार-सागर को तरने में नौका के समान, अपने श्याम (बालो के) जूडे से घनघोर बादलो के समूह को जीतनेवाली, जिनेश्वर के मुखरूपी कमल से देदीप्यमान, वाणी की जय हो।
___ जो भव्य जीव रूपी कमलो के आन्तरिक आनन्द को उत्पन्न करती है, और अंधकार के पुंज को सूर्य के प्रकाश की तरह दूर करती है, सभी पदार्थों को प्रकाशित करती है, जो दोषो को दूर कर चुकी है, सो जिनेश्वर कीजाज्वल्यमान वाणी आपको (उत्तम) भाषा प्रदान करे।
भव्यजनो के मनरूपी कमलो को सूर्य के प्रकाश की तरह विकसित करनेवाली, समस्त सन्देहो को दूर करने वाली, जिनेश्वर की वाणी को मैं वन्दन करता हूँ।
निश्रय तथा व्यवहार - दोनो नयो से स्वतन्त्र और उत्तम वाच्यसर्व पद्धति स्वरूप, उपाध्यायो के मुखरूपी कमल के वाहनवाली को मैं वन्दन करता हूँ।
जो सब आत्माओ का हित करनेवाली है, जो वर्ण से युक्त नहीं है, जो दोनो होठो के स्पन्दन से रहित है, इच्छाओ के व्यवहार से रहित है, दोष-मल से रहित है श्वास के रोध-क्रम से रहित है, जिनका ईर्ष्यारूपी जहर शांत हो चुका है ऐसा, पशु समूह एवं विद्वानों द्वारा समानरूप से सुना गया है, विपत्तियों का नाश करनेवाले सर्वज्ञ
सर्वज्ञवाणी जयतात् सर्वभाषामयी शुभा। पञ्चत्रिंशदगुणोपेता मनुपूर्वस्वरूपिणी
||१|| दयामय्यमृतमयी वाग्देवी श्रुतदेवता। संसृष्टिविगमध्रौव्य दर्शिका भुवनेश्वरी
॥शा ब्रह्मबीजध्वनिमयी श्रीमती वाग्भवात्मिका। ज्ञानदर्शनचारित्र-रत्नत्रितयदायिका
।।३।। अर्हद्वक्त्राब्जसम्भूता भव्यकैरवचन्द्रिका। नय प्रमाणगम्भीरा नवतत्त्वगमान्विता
॥४॥ वाग्वादिनी भगवती कुमतिध्वंसकारिणी। स्याद्वादिहृदयाम्भोजस्थायिनी मातृकामयी
||५|| नित्या सरस्वती सत्या ज्योतिरूपा जगद्धिता। वागीश्वरी सिद्धिदात्री सिद्धबीजमयी परा
॥३॥ परमैश्वर्यसहितागणभृद्गुम्फिता श्रुते। सिद्धान्तार्थप्रदाऽचिन्त्याऽनन्तशक्तिश्चसारदा
॥७॥ स्यावादवादिनी श्रेष्ठा तारिणी भववारिधेः । या हजाड्यान्धकारस्य हरणे तरणिप्रभा
1॥८॥ सामद्वक्त्रे निवसताज्ज्ञानानन्दप्रदायिनी। नमस्या मामकी तस्यै बोभवीतु मुहर्मुहः
(अष्टभि: कुलकम्)
॥९॥
। इति श्री जिनवाक् स्तुतिः। श्री प्रवचनदेव्यै नमः। णमो बंभीएलिवीए। णमो सुयदेवयाएभगवईए।
णमो सुयस्सभगवओ। श्री ज्योतिर्मायाभ्यां नमः ।
अनुसंधान-५ पुस्तिकामें से साभार.... |
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