Book Title: Sachitra Saraswati Prasad
Author(s): Kulchandravijay
Publisher: Suparshwanath Upashraya Jain Sangh Walkeshwar Road Mumbai
View full book text
________________
જ્ઞાનરૂપ વરદાનને આપનારી છે. જે પ્રાણીઓના ઘોર અજ્ઞાનનો વિનાશ કરનારી છે તેમજ જે કલ્યાણ અને લક્ષ્મીના વરદાનને દેનારી છે તે (સરસ્વતી દેવી) મારાં દુષ્કૃત્યોને દૂર કરીને મારા श्रुत (ज्ञान) ने सर्पहा यथार्थ रो.
११
: संपूर्ण :
समस्त कल्याणोंकी वृद्धि करनेवाली, सारे सद्गुणोंक समूहको देनेवाली, मनोहर सुखका विकास करनेवाली ऐसी सरस्वती देवी मेरे पापोंको दर करें।
१
-:
देवो असुरो और मानवोंसे सेवित, जगतमें (जीवोंकी) जडताको हरणकरनेवाली, धवलपंखवाले राजहंसपर बिहार करनेवाली, श्रुतकी स्वामिनी, हे सरस्वती देवी ! मेरे पापोकों दूर करें ।
२
*
अनुवाद
प्रकाण्ड पंडितों से पूजित, अति धवल आभूषणों से शोभा पाई हुई, और देह लावण्यसे अलंकृत ऐसी सरस्वती देवी मेरे पापोकों दूर करें।
३
सोलह (चांदकी) कलाओंसे युक्त चांद जैसे मुँहवाली, जिसने सेवककी मतिका विकास किया है ऐसी, और जिसने हस्तमें कमण्डलु, पुस्तक एवं जपमाला रखी है ऐसी सरस्वती देवी मेरे पापों को दूर करें।
"
समस्त जीवगणके चित्तके संशयको दूर करनेवाली, संसारमें पैदा हुए पापों का निवारण करनेवाली, सकल सद्गुणों की परम्पराको धारण करनेवाली ऐसी सरस्वती देवी मेरे पापोकों दूर करें।
पराक्रमी शत्रुसमूहका मर्दनकरनेवाली, राजसभा आदि स्थानोंमें सम्मान बढानेवाली, भक्तजनोकें पैदा हुए संकटोको भेदनेवाली ऐसी सरस्वती मेरे पापोकों दर करें।
६
,
सकल सद्गुणोसें अलङ्कृत देहवाली, अपनी देहकी कान्तिसे, कष्टों को दूर करनेवाली, उत्तमवस्त्रोंको धारण करनेवाली और निर्मल, प्रभावाली ऐसी सरस्वती देवी मेरे पापों को दूर करें।
संसार स्वरूप दावानलको शान्तकरनेवाली, तेजवाली, हितकारी, ऐ कार मन्त्र कृपा करती हुई, और भक्तोंके चित्तको निर्मल करनेवाली ऐसी सरस्वती मेरे पापों को दूर करें 1
८
Jain Education International
पूजन होनेसे आनन्दित हुई जो प्राणीओके अज्ञानको दूर करके विद्वत्ता देती है, और जो इस जगतमें बुद्धिशालियोंकी जननी मानी
जाती है वो सरस्वती देवी मेरे पापोकों दूर करें।
समस्त शास्त्ररूप समुद्र में श्रेष्ठ नौका समान, उत्तम - निर्मल यशवाली, जीवगणकी अज्ञानताको नाश करनेवाली, जिने धरके मुख कमल में वास करनेवाली ऐसी सरस्वती देवी मेरे पापों को दूर करें ।
१०
इसी तरह सुविधिपूर्वक पूजन की गई, स्तुति की गई ऐसी, भगवती श्री श्रुतदेवता जो पंडितजनों की जननी है, जो यथार्थ ज्ञानरूपका वरदान देनेवाली है, जो जीवगणके गाव अज्ञानको विनाश करनेवाली है और सारे कल्याण एवं लक्ष्मीका वर देनेवाली है वो (सरस्वती देवी) मेरे (सभी) दुष्कृत्योंको दूर करके मेरे श्रुत (ज्ञान) को सर्वकालमें समुचित करें ।
११
सम्पूर्ण.
५
चिरन्तनाचार्यविरचितश्री सरस्वतीस्तोत्रम् ॥ उपजाति संसार दावानल दाहनीरं
त्वं शारदादेवि ! समस्तशारदा, विचित्ररुपा बहुवर्णसंयुता। स्फुरन्ति लोकेषु तवैव सूक्तयः, सुधास्वरुपा वचसां महोर्मयः ||१||
भवद्विलोलाम्यक दर्शनादहो, मन्दोऽपि शीघ्रं कविरेव जायते । तवैव माहात्म्यमखण्डमीक्ष्यते, तवार्थवादः पुनरेव गीयते ॥२॥ कर्पूरनीहारकरोज्ज्वला तनु, विभाति ते भारति शुक्ल-नीरजे । कराग्रभागे धृतचारु-पुस्तका, डिण्डीर - हीरामल - शुभ्रचीवरा ॥ ३ ॥
-
मरालबालामलवामवाहना, स्वहस्तविन्यस्त- विशाल-कच्छपी । ललाटपट्टे कृतहेमशेखरा, सन्ना प्रसन्ना भवतात्सरस्वती
||४||
सद्विद्याजलराशि- तारणतरी सद्रुपविद्याधरी, जाड्यध्वान्तहरी सुधाब्धिलहरी श्रेयस्करी सुन्दरी । सत्या त्वं भुवनेश्वरी शिवपुरी सूर्यप्रभा जित्वरी, स्वेच्छादानवितान निर्झरगवी सन्तायतां छित्वरी
सुरनर- सुसेव्या सेवकेनाऽपि सेव्या, भवति यदि भवत्या किं कृपा कामगव्या । जगति सकलसूर्यास्तवत्समाना न भव्या, रुचिर-सकलविद्या दायिका त्वं तु नव्या
-
८
For Private & Personal Use Only
॥५॥ शार्दूल
॥६॥ मालिनी
यो भक्त्या सुरित नवीति सततं स्फुरन्ति मौठ्यंमहः, त्वत्सेवां च चरीकरीति तरसा बोभोति शं श्रेयसाम
www.jainelibrary.org