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बुद्धि का बादशाह
श्रेणिक ने टोकरियों को झटकना-पटकना चालू किया। अंदर रहे हुए नरम-नरम खाजे टूटने लगे... बिखरने लगे और बाँस की बनी टोकरियों के छेद में से टुकड़े बाहर गिरने लगे। कुछ देर में तो जमीन पर ढेर हो गया। सभी राजकुमारों ने जी भरकर खाजों के टुकड़े खाये और मजे से पानी पीते रहे।
बाद में सभी राजकुमार राजा प्रसेनजित के पास पहुँचे । राजा ने पूछा : 'क्यों, तुम खा-पीकर तृप्त हुए हो ना?'
एक कुमार ने कहा : 'पिताजी, सही बताएँ तो हम लोगों को पहले पहल कुछ सूझा ही नहीं था... पर श्रेणिक की चतुराई और होशियारी के कारण ही हम सब ने पेट भरकर खाजे खाये और आराम से पानी पीया!' यों कहकर सारी बात बताई। __राजा ने श्रेणिक के सामने प्रेमभरी निगाहों से देखा परंतु प्रशंसा या तारीफ की एक भी शब्द नहीं कहा। कुछ दिनों बाद राजा ने वापस राजकुमारों की बुद्धि की परीक्षा करने का सोचा।
राजा ने बड़ा तपेला भरकर दूध की खीर बनवाई। खीर में शक्कर-बादामकेसर-इलायची वगैरह डलवाकर अत्यंत स्वादिष्ट एवं खुशबूदार बनवाई गई।
राजकुमारों को बुलवाकर, राजमहल के आँगन में बँधवाये हुए मंडपशामियाने के नीचे सबको भोजन के लिए बिठाया गया। सभी की थाली में खीर परोसी गई। राजकुमारों ने खीर का एकाध बूंट भरा ही था कि अचानक शामियाने में बीस-पच्चीस शिकारी कुत्ते आ झपटे! भौं-भौं ... की आवाज से सभी राजकुमार सहसा घबरा उठे और भोजन की थाली ज्यों की त्यों छोड़कर वहाँ से भाग निकले! जूठे मुँह... जूठे हाथ... सभी सर पर पाँव रखकर भाग गये। केवल श्रेणिक कुमार निश्चित और निर्भय होकर बैठा रहा। उसने चतुराई से इधर-उधर-आसपास पड़ी हुई अन्य राजकुमारों के भोजन की थालियाँ कुत्तों के सामने रख दी... कुत्ते पूंछ दबाते हुए उन थालियों की खीर खाने लगे... श्रेणिक अपनी थाली की पूरी खीर मजे से खाकर खड़ा हुआ। फिर हाथ मुँह धोकर वह राजा प्रसेनजित के पास गया। दूसरे सभी राजकुमार भी वहाँ पहुँच गये थे। राजा ने श्रेणिक को एकदम तृप्त और ९९ राजकुमारों को भूखा पाया। राजा ने दिखावे का गुस्सा करते हुए कहा : 'यह श्रेणिक निरा गंवार-सा है... अरे, यह तो कुत्तों के साथ बैठकर भी
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