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अभयकुमार की दीक्षा चुके थे... लोगों का अविरत प्रवाह समवसरण की ओर जाने लगा। अपने लाड़ले राजकुमार और बुद्धिनिधान महामंत्री को साधु के भेष में देखकर बच्चेबूढ़े सभी रो पड़े।
सभी नगर में वापस लौटे।
श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने राजगृही से विहार कर दिया। राजगृही सूनी-सूनी हो गई थी। अभयकुमार की स्मृति में प्रजा पागल हो रही थी। राजमहल की रौनक मर चुकी थी। चारों ओर सन्नाटा बर्फ बनकर छा गया था। ____ मुनिवर अभयकुमार भगवान के चरणों में रहकर ज्ञान-ध्यान के साथ-साथ घोर तपश्चर्या करने लगे। कई बरसों तक उनकी उग्र आराधना चलती रही।
उनका आयुष्य पूरा हुआ।
समता-समाधि में डूबे हुए अनशन व्रत स्वीकार करके उन्होंने प्राणों का त्याग किया। __ वे 'अनुत्तर देवलोक' में 'सर्वार्थसिद्ध' नामक विमान में देव हुए। अभी वर्तमान में वे वहाँ पर हैं। वीतराग जैसी उनकी अवस्था है। श्रेष्ठतम सुख वैभव में भी वे अनासक्त योगी की तरह जी रहे हैं! अभी और असंख्य बरस वे वहीं पर गुजारेंगे। __ वहाँ का आयुष्य पूर्ण करके... उनकी आत्मा मध्यलोक में आये हुए 'महाविदेह' क्षेत्र में [अपना क्षेत्र भरतक्षेत्र कहलाता है] जन्म लेंगे। उत्तम कुल में उनका जन्म होगा। __ वहाँ उन्हें साक्षात् तीर्थंकर भगवंत का समागम प्राप्त होगा। वे उनके श्री चरणों में दीक्षा लेंगे। उग्र तपश्चर्या करके आत्मा पर लगे हुए आठों कर्म के आवरण को नष्ट करेंगे। और इस तरह मुक्ति को प्राप्त होंगे।
परम सुख... चरम शांति और आत्मानंद की अनुभूति में लीन हो जाएंगे।
समाप्त.
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