Book Title: Rajkumar Shrenik
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 94
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अभयकुमार की दीक्षा ८६ किनारे जिन तपस्वी मुनि के दर्शन किये थे... मुझे उन मुनि की चिंता सता रही थी। चूँकि रात में खून को बर्फ कर दे वैसी कड़ाके की ठंढ़ थी... और उन मुनि ने तो केवल एक वस्त्र ही कमर पर लपेटा था... हम तो ऊनी - गरम कंबल... और मुलायम रजाईयाँ ओढ़कर सोते हैं... फिर भी सर्दी से काँप जाते हैं... तब फिर उन मुनि का क्या हुआ होगा... बस यही चिंता मुझे जारजार किये जा रही थी!' Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रेणिक की आँखें विस्फारित हो गई... उसे अपनी गलती का अहसास हो गया... साथ ही उसे एक बात की याद आ गई... और वह खड़े हो गये... 'मैं समवसरण में जाता हूँ...' कहकर वे अंतःपुर के बाहर निकल गये । रथ में बैठकर शीघ्र ही समवसरण की ओर दौड़े। उन्हें अपने शब्द याद आ गये... 'जब अभयकुमार ने दीक्षा लेने की बात... बरसों पहले की थी तब मैंने उसे कहा था कि जब मैं तुझे गुस्से में दनदनाकर कह दूँ... 'चल जा, मुझे तेरा मुँह भी मत बताना!' तब तू दीक्षा ले लेना । और आज वे शब्द अनजाने में मेरे मुँह से निकल गये ! क्या समवसरण में जाकर अभय ने दीक्षा तो नहीं ले ली होगी प्रभु के पास में?' श्रेणिक के दिल में तहलका मच गया। उसे अपनी दुनिया वीरान होती नजर आने लगी। ‘मैंने आज बहुत बड़ी गलती कर दी....!' रथ समवसरण के प्रथम गढ़ में पहुँचकर खड़ा हो गया । श्रेणिक रथ में से उतरे और वेग से चढ़ते हुए तीसरे गढ़ में पहुँचे । प्रभु को वंदना की... पास में नजर की तो अभयकुमार को साधु के भेष में देखा ! श्रेणिक की आँखें बरस पड़ी। वे फफक-फफक कर रो दिये। मुनिवर अभय के चरणों में गिरकर वंदना की और कहा : 'आपने मुझे ठगा है!' श्रेणिक राजमहल को वापस लौटे। अन्तःपुर में जब रानियों को समाचार मिले कि 'अभयकुमार ने दीक्षा ले ली है।' तो करुण वातावरण छा गया। सभी रानियाँ तत्काल रथ में बैठकर समवसरण में पहुँची। भगवान को भावपूर्वक वंदना करके मुनिराज अभय को वंदना की। हर एक रानी फूट-फूट कर रोये जा रही थी। राजगृही में अभयकुमार को दीक्षा के समाचार बाढ़ के पानी की तरह फैल For Private And Personal Use Only

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