Book Title: Rajkumar Shrenik
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 47
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पिता की चिट्ठी आई! - ६. पिता की चिट्ठी आई! राजा प्रसेनजित हर्षविभोर हो उठे । उनकी आँखों में खुशी के आँसुओं का समुंदर उफनने लगा। गद्गद होते हुए उन्होंने देवनंदि से कहा : 'देवनंदि, तूने यह समाचार देकर मेरे ऊपर महान उपकार किया है। भाई, एक बात की सावधानी रखना... मेरे निन्यानवें पुत्रों से इस बात की जरा भी चर्चा नहीं करना!' 'जी महाराजा! आप निश्चित रहें। यह बात मेरे आपके बीच ही सीमित रहेगी। किसी को कुछ मालूम नहीं होगा।' देवनंदि को बिदा करके महाराजा प्रसेनजित सोचने लगे : 'मेरा प्रिय पुत्र सुख में है... राजवैभव सा वैभव उसे मिला है... राजकुमारी जैसी श्रेष्ठ कन्या के साथ उसकी शादी हुई है। बस... वह सुखी है तो मैं भी सुखी हूँ ! आज आराम से मुझे नींद आएगी। परंतु एक बार मैं किसी बुद्धिशाली-चतुर राजपुरुष को संदेश देकर बेनातट श्रेणिक के पास भेजूं तो सही! यदि वह देवनंदि के कहे मुताबिक वास्तव में श्रेणिक होगा तो जरूर मेरी समस्या का जवाब देगा।' राजा प्रसेनजित ने अपने विश्वस्त गुप्तचर सुमंगल को बुलाकर कहा : 'तुझे बेनातट नगर जाने का है। वहाँ पर नगरसेठ धन श्रेष्ठि के वहाँ जाना | उनकी हवेली में गोपालकुमार नाम का एक युवक है... उसे मेरा यह पत्र देना । और वह जो जवाब लिख कर दे, वह साथ लेकर वापस तुरंत लौट आना। कार्य जितना जल्दी करना है उतना ही गुप्त रखना है। किसी को कानोंकान भनक भी नहीं लगनी चाहिए।' राजा ने पत्र लिखकर सुमंगल को दिया। सुमंगल पत्र लेकर राजा को प्रणाम करके वहाँ से निकला | उसी दिन एक श्रेष्ठ वेगवान घोड़े पर बैठकर वह बेनातट की ओर चल दिया। 'सेठ, मुझे गोपालकुमार से मिलना है!' 'बैठो, अभी कुमार खुद ही यहाँ आएँगे।' धन सेठ ने सुमंगल को मीठे शब्दों में कहा। इतने में प्राभातिक कार्यों से निपटकर श्रेणिक (गोपालकुमार) आ पहुँचा पेढ़ी पर! For Private And Personal Use Only

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