Book Title: Rajkumar Shrenik
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 90
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभयकुमार की दीक्षा ८२ ११. अभयकुमार की दीक्षा बरसों गुजर गये थे। श्रेणिक राजा के शरीर पर बुढ़ापे की झुर्रियां घिर आई थी। अभयकुमार भी प्रौढ़ हो चुके थे। एक दिन की बात है : श्रमण भगवान महावीर स्वामी विचरण करते हुए राजगृही में पधारे। नगर के बाहर गुणशील चैत्य में ठहरे थे। सर्दियों का मौसम था। कड़ाके की सर्दी की गिरफ्त में पूरा वातावरण काँप रहा था। गणशील चैत्य के इलाके में समवसरण की रचना हुई थी। भगवान का उपदेश सुनने के लिए हजारों स्त्री-पुरुष एकत्र हुए थे। महाराजा श्रेणिक और रानी चेल्लणा (श्रेणिक राजा के अनेक रानियाँ थी, उसमें पट्टरानी चेल्लणा थी, जो कि वैशाली के राजा चेटक की राजकुमारी थी... और परमात्मा महावीरस्वामी की परम उपासिका थी।) भी वहाँ उपस्थित थे। ___ उपदेश सुनते हुए शाम हो गई थी। सूर्य अस्त होने में एकाध घंटे की देर थी। ठंढ़ बढ़ती जा रही थी। श्रेणिक और चेल्लणा रथ में बैठकर नगर में जाने के लिए निकले। रथ शीघ्र गति से दौड़ रहा था । नदी के किनारे पर चेल्लणा रानी ने एक मुनि को कायोत्सर्ग ध्यान में लीन होकर खड़े देखा । एक घटादार वृक्ष के नीचे केवल एक वस्त्र पहनकर कुछ भी ओढ़े बगैर मुनि किसी चट्टान की भाँति स्थिर खड़े थे। चेल्लणा रानी काँप उठी। वह सोचने लगी। 'ओह... इतनी कड़ाके की सर्दी में भी बदन खुला रखकर ये महामुनि ध्यान में डूबे हुए हैं! धन्य है इनकी तपश्चर्या को।' उसने श्रेणिक से कहा : 'स्वामिन्, उधर देखिये! नदी किनारे कोई महामुनि ध्यान में खड़े हैं। बड़े For Private And Personal Use Only

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