Book Title: Rajkumar Shrenik
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 89
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८१ अभयकुमार ने बदला लिया! 'धैर्यकुमार का भाई बेचारा कितना पागल है... फिर भी धैर्यकुमार उसकी कितनी सेवा करते हैं!' चंडप्रद्योत को लेकर अभयकुमार नगर के बाहर आ गये। वहाँ पर रथ तैयार खड़ा था। चंडप्रद्योत को रथ में डाला और रथ को राजगृही के रास्ते पर दौड़ा दिया। पाँचों शस्त्रसज्ज सैनिकों के घोड़े रथ के पीछे चौकसी रखते हुए दौड़ रहे थे। 'महाराजा, आपकी सेवा में मालवपति को उपस्थित करता हूँ।' अभयकुमार ने राजगृही आकर महाराजा श्रेणिक को निवेदन किया। चंडप्रद्योत को श्रेणिक के समक्ष लाकर खड़ा रखा गया कि तुरंत श्रेणिक खुद खुली तलवार लेकर चंडप्रद्योत की ओर लपके। उसी वक्त अभयकुमार ने श्रेणिक का हाथ पकड़ लिया और कहा : 'पिताजी, मालवपति को दुश्मन नहीं मानना है! उन्हें हमारे मित्र बनाकर विदाई देनी है। मगध और मालवा-दो मित्र राज्य बनेंगे। इससे प्रजा की सुखशांति और समृद्धि बढ़ेगी। अभयकुमार ने चंडप्रद्योत के बंधन खोल दिये। हाथ जोड़कर चंडप्रद्योत से माफी माँगी। अपने महल पर ले जाकर चंडप्रद्योत के लिए योग्य सुंदर वस्त्र एवं शस्त्र भेंट किये। महाराजा श्रेणिक के साथ बैठकर चंडप्रद्योत ने भोजन किया। दोनों के बीच दोस्ती का रिश्ता बन गया । चंडप्रद्योत ने कहा : 'महाराजा, सचमुच तुम्हें पुत्र और मंत्री महान बुद्धिशाली मिला है...। यदि मुझे आपसे कुछ माँगना हो तो मैं आपके इस बुद्धिनिधान बेटे को ही माँग लूँ!' श्रेणिक ने कहा : 'राजेश्वर, यह मेरा बेटा तो कभी का भगवान महावीर के पास जाने के लिए तरस रहा है! यह न तो मेरे पास रहेगा... न आपके पास आएगा!' चंडप्रद्योत को राजगृही से भव्य बिदाई दी गई। For Private And Personal Use Only

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