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अभयकुमार ने बदला लिया!
सोना-रूपा भी खुश हो उठी।
रात्रि के समय अभयकुमार ने अपने पाँचों सैनिकों को हवेली के भीतर बुलवा लिये | घोड़े हवेली के पिछवाड़े बाँध दिये | सोना-रूपा से कहा : 'जब सबेरे चंडप्रद्योत यहाँ आये तब तुम उसका स्वागत करना। शस्त्र और मुकुट दूर रखवा देना... इसके बाद मैं उसे बराबर बाँध दूंगा। तुम सब रथ में बैठकर, नगर के बाहर पहुँच जाना। वहाँ हमारा इन्तजार करना । पाँचों सैनिक तुम्हारे साथ रहेंगे। मैं राजा को लेकर आ जाऊँगा। राजा को रथ में डालकर हम राजगृही की ओर प्रयाण कर जाएंगे। रास्ते में कुछ-कुछ दूरी पर हमें मगध के सौ-सौ सैनिक मिलते रहेंगे। शायद पीछे से उज्जयिनी के सैनिक आ चढ़ें तो अपने सैनिक उन्हें रास्ते में ही रोके रखेंगे और हम पूर्ण सुरक्षित राजगृही पहुँच जाएँगे।
'बड़े भैया, आपकी यह योजना तो बड़ी खतरनाक है...। आप राजा को बाँधकर बीच बाजार से उठा ले जाओगे?'
'हाँ... मैंने बीच बाजार से उसका अपहरण करने की प्रतिज्ञा की है। हाँ, उसे राजगृही ले जाकर पूरे सम्मान के साथ रखूगा और इज्जत के साथ बिदाई दूँगा! मुझे तो केवल उसके गर्व का खंडन करना है। उसके अभिमान के परदे को चीरना है।' 'कल सबेरे ही बेचारे का पूरा अभिमान मिट्टी में मिल जाएगा।' सोना-रूपा ने अभयकुमार को प्रणाम किये और वे सोने के लिए चली गई।
अभयकुमार भी हवेली के पिछवाड़े के कमरे में जाकर सो गये। इससे पहले उन्होंने उस दिखावे के पागल प्रद्योत को एक हजार सोनामुहरें देकर बिदाई दे दी थी। उसकी जगह पर अब सच्चे और अच्छे प्रद्योत को बाँधकर ले जाने की कल्पना में खोये-खोये अभयकुमार सो गये। । दूसरे दिन सबेरे अंधेरे ही अंधेरे में भेष बदलकर राजा चंडप्रद्योत श्वेत हवेली में प्रविष्ट हुआ । अभी सूर्योदय होने में काफी समय था। सोना-रूपा ने नजरों के तीर चलाते हुए राजा का स्वागत किया। चंडप्रद्योत तो खुशी से मचल उठा।
'आज मेरी मनोकामना सफल हुई!' 'हम भी धन्य हो उठी मालवपति को पाकर!' सोना ने आँखों की प्याली से ढेर सारा प्यार उड़ेलते हुए कहा।
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