Book Title: Rajkumar Shrenik
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 86
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अभयकुमार ने बदला लिया ! ७८ बाहर गाँव जानेवाला है, सात दिन बाद लौटेगा । इसलिए कल सबेरे एकदम अंधरे-अंधेरे ही महाराजा यहाँ आ जाएं तो हम उनकी हर इच्छा पूरी करेंगे । ' सोना-रूपा ने कहा : 'ठीक है बड़े भैया, आप कहते हैं वैसा ही हम कहेंगे । ' दूसरे दिन अभयकुमार अपने भाई प्रद्योत को लेकर वैद्य के घर पर गये, तब परिचारिका श्वेत हवेली में आ पहुँची । तो सोना दिखावटी गुस्से में नाक-भौं फुलाती हुई बरस पड़ी... 'अरी... तू बिल्कुल बेशरम है... वापस आ गई!' 'क्या करूँ ? महाराजा तुम्हारे बिना पानी के बिना तड़पती मछली की भाँति बेचैन हैं! तुम्हें कुछ तो सोचना ही होगा ।' सोना ने रूपा के सामने देखकर पूछा : 'रूपा क्या करेंगे?' रूपा ने कहा : ‘यदि महाराजा को इतना प्रेम है अपने पर, तब उन्हें कल सबेरे अंधेरे ही अंधेरे में यहाँ बुला लें तो ?' 'हाँ... यह ठीक है... बड़े भैया भी आज रात्रि में बाहर जानेवाले हैं। सात दिन बाद आयेंगे।' सोना बोली और परिचारिका से कहा : Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'तू महाराजा से कहना कि कल सबेरे अंधेरे ही वे यहाँ पधार जाएं... । अकेले ही आएं...। और वह भी सादे कपड़े में, ताकि हवेली में किसी को संदेह न हो !' परिचारिका तो खुशी से नाच उठी! सोना- रूपा के गले में हीरे के दो हार डालकर वह हवेली से निकल गई। जल्दी-जल्दी चलती हुई वह सीधी राजमहल में पहुँची और राजा के पास जाकर भरी-भरी सांस में बोली : 'महाराजा... काम हो गया !' सोना- 'अरे... पहले जरा आराम से बैठ तो सही... सांस ले जरा, फिर बात कर !' परिचारिका जमीन पर बैठ गई और शांति से उसने सारी बात कही। राजा प्रसन्न हो उठा। उसने अपने गले का कीमती हार निकाल कर दासी को भेंट कर दिया | - रूपा ने अभयकुमार से सारी बात कही । अभयकुमार ने कहा : 'अब अपना काम चुटकी में हुआ समझो ! आज सारी तैयारियाँ कर लो। कल सबेरे ही हम राजगृही की ओर चल निकलेंगे।' For Private And Personal Use Only

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