Book Title: Rajkumar Shrenik
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 85
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभयकुमार ने बदला लिया ! ७७ अभयकुमार ने राजगृही से पाँच चुने हुए घुड़सवार सैनिकों को गुप्त भेष बुलवा लिए थे। वे उज्जयिनी आ पहुँचे थे। में अगले दिन जब अभयकुमार अपने उस पागल भाई प्रद्योत को बाँधकर वैद्य के घर पर ले गये, तब वापस उस परिचारिका ने श्वेत हवेली में प्रवेश किया। परिचारिका को देखते ही रूपा आँखें तरेरकर चिल्लायी, 'क्यों री .... तू आ पहुँची ? क्यों आई वापस ?' वापस परिचारिका ने कहा : 'अरे... पर तुम समझती क्यों नहीं ? राजा खुद तुम्हारे कदमों पर ढेर होने को तैयार है, और तुम मना करती हो? अरे..., लक्ष्मी जब तिलक करने को आई हो तब भला कौन चेहरा धोने को बैठेगा?' बस, अब तुम मुझे इतना बता दो कि महाराजा को यहाँ पर कब लिवा लाऊँ ?' सोना ने दहाड़ते हुए कहा : 'ओ बंदरिया ! इसी वक्त यहाँ से अपना काला मुँह लेकर भाग जा..., वरना धक्के खाकर निकलना होगा समझी ना?' परिचारिका ने ऊँची आवाज में कहा : 'धक्के मारने की आवश्यकता नहीं है..., मैं तो खुद उल्टे पैरों चली जाऊँगी... पर याद रखना, सत्ता के आगे तुम्हारी क्या चल सकेगी! राजा चाहेगा तब तुम्हें उठा ले जाएगा। फिर मुझे याद करके रोना. !!' परिचारिका वहाँ से निकलकर राजमहल पर पहुँची। राजा से जाकर सारी बात कही। राजा ने उसे हिम्मत देकर कहा : 'तू चिंता मत कर । रूपसी लड़कियाँ पहले ज्यादा ही मगरूरी लेकर घूमती हैं... पर धीरे-धीरे मान जाएगी! कल तुझे वापस उनके पास जाना होगा, मैंने जब से उन्हें देखा है..... मेरा खाना-पीना-सोना बेकार हो गया है। कुछ सूझता नहीं है । यदि कल वे नहीं मानेगी... तब फिर मैं किसी भी हालत में उन्हें यहाँ उठा लाऊँगा !' परिचारिका ने कहा : 'ठीक है, आप कहते हैं तो कल वापस जाऊँगी, उनकी हवेली पर... लेकिन वे माननेवाली नहीं हैं!' अभयकुमार ने सोना-रूपा से कहा : 'कल वह परिचारिका वापस आएगी। थोड़ी मान मनौवल के बाद तुम उससे कहना : 'हमारा भाई आज रात को For Private And Personal Use Only

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