Book Title: Rajkumar Shrenik
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 84
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभयकुमार ने बदला लिया! ७६ राजा ने सूचना दी थी... 'जब सेठ अपने पागल भाई को लेकर वैद्य के पास जाए, उस समय तू पहुँच जाना।' परिचारिका ने बराबर समय का खयाल किया और पहुँच गई हवेली । जैसे ही हवेली में प्रविष्ट हुई कि सोना ने पूछा : 'अरी ओ... तू कौन है? यहाँ पर क्यों आई है?' ___ 'मुझे तुम दोनों के साथ एक गुप्त बात करनी है!... इसलिए गुप्त कक्ष में चलो...।' परिचारिका ने कहा। 'हमारे लिए कुछ भी गुप्त नहीं है, हमें कुछ बात नहीं करनी है। तू यहाँ से चली जा!' 'अरे, पर तुम्हें यह पता है-मुझे किसने भेजा है, जानती हो?' दासी आँखें नचाती हुई बोली। 'किसी ने भी भेजा हो..., हमारा भाई घर में नहीं हैं..., हम बात नहीं करेंगे...।' 'अरे, पर मुझे महाराजा ने तुम्हारे पास विशेष बात करने के लिए भेजा है...। तुम्हारे भाई नहीं हैं घर पर इसीलिए तो मैं इस वक्त आई हूँ!' 'ठीक है, महाराजा ने क्यों भेजा है तुझे यहाँ पर?' 'महाराजा तुम दोनों पर मुग्ध हो उठे हैं, वे तुम्हें चाहते हैं!' 'क्यों? महाराजा के रानिवास में रानियाँ नहीं है?' 'हैं, पर तुम सी खूबसूरत तो नहीं हैं ना!' परिचारिका ने मुस्कान बिखेरते हुए कहा। _ 'अरी... चल हट! जा यहाँ से, हम तेरे महाराजा को नहीं चाहती हैं...। भाग यहाँ से, वरना...।' दोनों ने मिलकर परिचारिका को दरवाजे के बाहर धकेलकर, दरवाजा बंद कर दिया। परिचारिका अपना ढीला सा मुँह लेकर राजमहल में पहुंची। सोना-रूपा दरवाजा बंद करके खिलखिलाकर हँस पड़ी। जब अभयकुमार वैद्य के वहाँ से लौटे, तब सोना-रूपा ने सारी बात कही। धैर्यकुमार ने कहा : 'अरे, अभी तो वह वापस कल आएगी। कल भी उसका तिरस्कार करके उसे धकेल देना...| बस, लगता है अब कुछ ही दिनों में अपना कार्य हो जाएगा!' For Private And Personal Use Only

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