Book Title: Rajkumar Shrenik
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 59
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभयकुमार खेलने में भी अभयकुमार पहले नंबर पर ! सभी को वह प्यारा लगता.... सभी उसके दोस्त बन जाते ! जो भी उसे देखता... उसे वह प्यारा लगता ! यों करते हुए तीन साल बीत गये... अब तो अभयकुमार आठ साल का हो गया था। ५१ एक दिन जब अभय शाला से आया तब वह उदास था। रोजाना हँसता खिला अभय आता और माँ की गोद में बैठकर... माँ के गले में हाथ डालकर माँ से लिपट जाता! आज तो अभय उदास उदास था और आकर सीधा पलंग पर जाकर लेट गया, रोने लगा। इसकी सिसकियाँ बढ़ती ही गई ! सुनंदा दौड़ती हुई आई! पलंग पर बैठकर उसने अभय को अपनी गोद में लिया... और उसका सिर सहलाने लगी... 'क्या हुआ मेरे लाल को ?' पूछती है सुनंदा... पर अभय तो बस ... रोये ही जा रहा है! सुनंदा अभय के शरीर को सहलाती है... थपथपाती है..... 'क्या हुआ, बेटा? कुछ बोल तो सही! मुझ से नहीं बोलेगा?' सुनंदा भी रो पड़ी। अभय को उसने अपने सीने से लगा लिया... उसके माथे को चूमने लगी। माँ को रोती हुई देखकर अभय ने अपनी आँखें पोंछ ली । रोना बंद हो गया। उसने सुनंदा की आँखें भी अपनी मुलायम हथेलियों से पोंछ डाली। माँबेटा दोनों मौन हो गये । अभय ने सुनंदा का चेहरा अपनी हथेलियों में लेकर कहा : ‘माँ, तू मुझे सच बताएगी ना?' 'हाँ बेटा!' 'माँ ... मेरे पिताजी कहाँ है?' 'आज क्यों पूछ रहा है... ?' 'माँ... आज हम खेल रहे थे... मैं आसानी से जीत गया तो मुझसे जलनेवाला एक लड़का मुझ से कहने लगा.... For Private And Personal Use Only 'जीतने पर इतना इतराता क्या है... तू है तो बिन बाप का ! बाप का तो पता नहीं है और रुआब तो राजकुमार जैसा जताता है!'

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