Book Title: Rajkumar Shrenik
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 77
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६९ अभयकुमार का अपहरण 'अपना पहला दाव तो सफल रहा है...। अब लगता है... अपना कार्य मुश्किल नहीं होगा।' तीनों औरतें खुश होती हुई अपने स्थान पर पहुंची। तीनों ने सचमुच का उपवास किया था। क्योंकि तीनों को आशंका थी कि अभयकुमार जरूर गुप्त रूप से तलाश करवायेंगे कि 'उज्जयिनी की तीनों स्त्रियों को सचमुच उपवास है या नहीं?' और यदि पता लगे कि हमने झूठ बोला है... तो वे हमारी ओर संदेहभरी निगाह से देखने लगेंगे... और अपना मनसूबा शायद मिट्टी में मिल जाएगा।' और सचमुच अभयकुमार ने जाँच करवायी भी! उज्जयिनी की उन तीनों श्राविकाओं को बुला लाने के लिए आदमी भेजा। वे तीनों अभयकुमार के घर पर आई। अभयकुमार ने उनका स्वागत करके उन्हें पारणा करवा कर कहा : 'यदि मेरे योग्य कुछ कार्य-सेवा हो तो अवश्य कहिए... यहाँ राजगृही में आपको कोई तकलीफ तो नहीं है?' नृत्यांगना ने भोलेपन से कहा : 'नहीं... नहीं... यहाँ राजगृही में तकलीफ किस बात की? जहाँ सम्राट श्रेणिक जैसे महाराजा का शासन हो और आप जैसे महामंत्री हो, वहाँ तकलीफ भला कैसे हो सकती? हम सुखरूप हैं।' अभयकुमार ने कहा : 'कभी-कभी मेरे घर पर पधारियेगा... हम तत्त्वचर्चा करेंगे। धर्म की बातें करेंगे।' नृत्यांगना ने कहा : 'आपका आग्रह है तो हम अवश्य आयेंगे। पर कभी उद्यान में हमारी कुटिया में आप भी पधारने की कृपा करना!' अभयकुमार ने हामी भरी। नृत्यांगना प्रसन्न हो उठी। इसके बाद तो कई बार एक दूसरे के वहाँ आना-जाना हुआ। आपस में साधर्मिक भाई-बहन का संबंध हो गया। अभयकुमार निष्कपट थे... सरल थे। नृत्यांगना कपटी थी... धूर्त थी। एक दिन की बात है... अभयकुमार बगीचे में नृत्यांगना की कुटिर पर गये हुए थे। नृत्यांगना ने For Private And Personal Use Only

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