Book Title: Rajkumar Shrenik
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 52
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४ अभयकुमार श्रेणिक सुनंदा के शयनखंड में गया। उसने कहा : "देवी... मुझे राजगृह जाना होगा। मेरे पिताजी बुला रहे हैं। मैं उनके पास जाऊँगा। जाना जरूरी है।' 'स्वामिन, मैं भी आपके साथ आऊँगी... चूँकि आपके बगैर मैं एक पल भी नहीं रह सकती।' ___ 'पर... किसी भी हालत में तुझे अभी तो साथ में ले जाया नहीं जा सकता। तुझे यहीं पर रहना होगा और सुखपूर्वक पुत्र को जन्म देना होगा।' सुनंदा मौन रही... 'जो इनकी इच्छा... वही मेरी इच्छा... ये कहेंगे वैसा ही मुझे करना है!' सुनंदा ने कहा : 'पुत्र का नाम 'अभयकुमार' रखना है ना?' 'हाँ उसका पालन अच्छे ढंग से करना।' "परंतु नाथ! जब वह दो-पाँच साल का होगा... कुछ समझदारी आएगी उसमें... फिर वह पूछेगा... मेरे पिता कहाँ हैं? उनका नाम क्या है? वे कहाँ रहते हैं? तब मैं उसे जवाब क्या दूंगी?' 'मैं अपने शयनगृह की दीवार पर कुछ लिखकर जाऊँगा। उसे वह पढ़वा देना।' श्रेणिक ने सुनंदा को भी अपनी सही पहचान नहीं दी... दीवार पर केवल इतना लिख दिया : 'राजगृह गाम, गोपाल नाम, धवल टोड़े घर ।' सुनंदा ने भी अपना दिया हुआ वचन निभाया : 'मैं कभी भी आपका नामगाँव या कुल की पृच्छा नहीं करूँगी।' धन सेठ से भी श्रेणिक ने राजगृह जाने की बात कही। सेठ ने पहले तो इजाजत नहीं दी... बाद में समझाने पर भावभरी बिदाई दी । ढेर सारी बेशुमार संपत्ति दी। जवाहरात और अलंकार दिये । श्रेणिक ने एक हजार श्रेष्ठ घोड़े खरीद लिए। एक हजार सैनिकों को तनख्वाह से रख लिये। उच्चकोटि के शस्त्र साथ में लिये। सैनिकों को शस्त्रसज्ज कर दिये... एक हजार घुड़सवार सैनिकों के साथ श्रेणिक ने बेनातट नगर से प्रयाण किया। For Private And Personal Use Only

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