Book Title: Rajkumar Shrenik
Author(s): Bhadraguptasuri
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 54
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अभयकुमार श्रेणिक ने भील-सेनापति से कड़क शब्दों में कहा : Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६ ‘ओ भीलराज! अब तुम्हें हमारे आगे-आगे चलना होगा... हमें राजगृही का रस्ता बताना होगा। रास्ते में जो घाट आता है... उसमें से हमें सही सलामत बाहर निकालना होगा । यदि मेरा कहा नहीं माना... और कुछ भी चालाकी करने की कोशिश की तो यह तलवार तेरी शरम नहीं रखेगी । बोटी-बोटी काटकर कुत्तों को खिला दूँगा !' भीलराज के साथ-साथ सवा लाख भील सैनिक भी चुपचाप चलते रहे । भीलराज ने राजगृही का रास्ता दिखलाया । कुमार का घोड़ा ठीक भीलराज के पीछे ही चल रहा था । कुछ दिनों की थकानेवाली यात्रा के पश्चात् सभी राजगृही के समीप पहुँच गये । राजगृही के किले के बाहर विशाल मैदान में भील सैनिकों की रावटियाँ डलवा दी । बाद में कुमार ने राजगृही में प्रवेश किया । कुमार ने अपने आने की पूर्व - सूचना राजा प्रसेनजित को भेजी ही नहीं थी । हजारों घुड़सवार और भीलराज के साथ श्रेणिककुमार ने राजगृही में प्रवेश किया । नगरवासी लोग कुमार को देखकर खुशी के मारे नाचने लगे । ‘श्रेणिककुमार आ गये... राजकुमार आ गये...' के नारों से सारा नगर गूँज उठा । राजमहल के द्वार पर पहुँचकर सैनिकों को महल के बाहर मैदान में खड़े रखकर भीलराज के साथ श्रेणिक ने राजमहल में प्रवेश किया और तीर की तरह सीधे सम्राट प्रसेनजित के खंड में पहुँचा । पिता के चरणों में प्रणाम किया... पास में बैठी अपनी माँ को भी प्रणाम किया । राजा-रानी राजकुमार को देखकर गद्गद हो उठे। दोनों की आँखें हर्षाश्रु से छलकने लगी। राजा प्रसेनजित ने राजकुमार को अपने सीने से लगाते हुए उसके सिर पर हाथ फेरा और बोले : 'बेटा, तू आ गया... अच्छा हुआ ! मुझे और तेरी माँ को बड़ी ही राहत मिलेगी। शाँति मिलेगी। हम अब पूरी तरह निश्चिंत हो जाएंगे ।' 'पिताजी, मैं इस भीलराज को भी साथ ले आया हूँ! इसके सवा लाख भील सैनिक नगर के बाहर खड़े हैं!' For Private And Personal Use Only राजा प्रसेनजित ने भीलराज के सामने देखा । भीलराज की आँखें जमीन पर टिकी हुई थी।

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